इजाज़त पर शेर
इजाज़त लेना या इजाज़त
देना वैसे तो ज़िन्दगी में आम सी बात है लेकिन कभी कभी इस का तअल्लुक़ जज़्बों की गहराई या रिश्तो की गर्माहट से होता है। इश्क़ के मुआमलों में इजाज़त के मानी बहुत अलग और कभी-कभी तो सख़्त तकलीफ़ पहुंचाने वाले होते हैं। पेश है यहाँ इजाज़त शायरी की एक झलकः
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी
मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
शम्-ए-ख़ेमा कोई ज़ंजीर नहीं हम-सफ़राँ
जिस को जाना है चला जाए इजाज़त कैसी
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
मुझ को दम भर के लिए ग़ैर की क़िस्मत दे दो
सारे जज़्बों के बाँध टूट गए
उस ने बस ये कहा इजाज़त है