क्या पूछते हो नाम-ओ-निशान-ए-मुसाफ़िराँ
हिन्दोस्ताँ में आए हैं हिन्दोस्तान के थे
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
इलाही एक दिल किस किस को दूँ मैं
हज़ारों बुत हैं याँ हिन्दोस्तान है
जो ये हिन्दोस्ताँ नहीं होता
तो ये उर्दू ज़बाँ नहीं होती
जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
दुनिया का इशारा था लेकिन समझा न इशारा, दिल ही तो है