कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
पुस्तकें 18
चित्र शायरी 2
मुझे भूल जाने वाले मिरे दिल की कुछ ख़बर भी मिरी आँख पर न जाना ये तो ख़ुश्क भी है तर भी ये क़दम रुके रुके से ये झुका झुका सा सर भी यहीं उन का नक़्श-ए-पा है यही उन की रहगुज़र भी फ़लक-आश्ना सही हम मगर एहतियात लाज़िम कि क़फ़स में ले न जाए ये मज़ाक़-ए-बाल-ओ-पर भी बड़े शौक़ से हुए थे यूँ हरम को हम रवाना ये ख़बर न थी कि रह में है तुम्हारा संग-ए-दर भी हो दराज़ उम्र यारब मिरे शैख़-ओ-बरहमन की कहीं ख़त्म हो न जाए ये जहान-ए-ख़ैर-ओ-शर भी न बदल रही हैं घड़ियाँ न सितारे डूबते हैं कहीं थक के सो गई है शब-ए-हिज्र की सहर भी
वीडियो 7
This video is playing from YouTube