करामत बुख़ारी
ग़ज़ल 10
नज़्म 3
अशआर 10
हर सोच में संगीन फ़ज़ाओं का फ़साना
हर फ़िक्र में शामिल हुआ तहरीर का मातम
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आह तो अब भी दिल से उठती है
लेकिन उस में असर नहीं होता
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मैं कि तेरे ध्यान में गुम था
दुनिया मुझ को ढूँढ रही थी
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याद न आने का व'अदा कर के
वो तो पहले से सिवा याद आया
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