कमाल जाफ़री
ग़ज़ल 20
नज़्म 2
अशआर 5
क़रीब रह कि भी तू मुझ से दूर दूर रहा
ये और बात कि बरसों से तेरे पास हूँ मैं
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बिखरा बिखरा हूँ एक मुद्दत से
रफ़्ता रफ़्ता सँवर रहा हूँ मैं
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हमेशा आप को समझा कि आप अपने हैं
हमेशा आप ने समझा कि दूसरे हैं हम
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सितम-ए-गर्मी-ए-सहरा मुझे मालूम न था
ख़ुश्क हो जाएगा दरिया मुझे मालूम न था
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