अशफ़ाक़ नासिर
ग़ज़ल 10
अशआर 12
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
उम्र ढल जाती है जल्दी पलट आना मिरे दोस्त
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शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
और शब उस को मनाने में गुज़र जाती है
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हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल बदल देता है
कभी फ़ुर्सत में मुझे देखने आना मिरे दोस्त
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वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो
तेरी किताब-ए-हुस्न के सब इक़्तिबास थे
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