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jis ke hote hue hote the zamāne mere

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आरिफ़ शफ़ीक़

ग़ज़ल 10

अशआर 8

जो मेरे गाँव के खेतों में भूक उगने लगी

मिरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली

ग़रीब-ए-शहर तो फ़ाक़े से मर गया 'आरिफ़'

अमीर-ए-शहर ने हीरे से ख़ुद-कुशी कर ली

अपने दरवाज़े पे ख़ुद ही दस्तकें देता है वो

अजनबी लहजे में फिर वो पूछता है कौन है

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कैसा मातम कैसा रोना मिट्टी का

टूट गया है एक खिलौना मिट्टी का

तुझे मैं ज़िंदगी अपनी समझ रहा था मगर

तिरे बग़ैर बसर मैं ने ज़िंदगी कर ली

पुस्तकें 3

 

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