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Ameen Rahat Chugtai's Photo'

अमीन राहत चुग़ताई

1930

अमीन राहत चुग़ताई

ग़ज़ल 16

नज़्म 2

 

अशआर 7

हम एक जाँ ही सही दिल तो अपने अपने थे

कहीं कहीं से फ़साना जुदा तो होना था

मैं आइना था छुपाता किसी को क्या राहत

वो देखता मुझे जब भी ख़फ़ा तो होना था

अब अनासिर में तवाज़ुन ढूँडने जाएँ कहाँ

हम जिसे हमराज़ समझे पासबाँ निकला तिरा

ज़ात के पर्दे से बाहर के भी तन्हा रहूँ

मैं अगर हूँ अजनबी तो मेरे घर में कौन है

शोर करता फिर रहा हूँ ख़ुश्क पत्तों की तरह

कोई तो पूछे कि शहर-ए-बे-ख़बर में कौन है

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