अफ़ज़ल मिनहास
ग़ज़ल 18
अशआर 23
दिल की मस्जिद में कभी पढ़ ले तहज्जुद की नमाज़
फिर सहर के वक़्त होंटों पर दुआ भी आएगी
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अपनी बुलंदियों से गिरूँ भी तो किस तरह
फैली हुई फ़ज़ाओं में बिखरा हुआ हूँ मैं
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उजली उजली ख़्वाहिशों पर नींद की चादर न डाल
याद के रौज़न से कुछ ताज़ा हवा भी आएगी
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चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे
आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया
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