नई औरत का तराना
रोचक तथ्य
(After reading Kishwar Nahid's Nazm 'Charge sheet'
हाँ दरवाज़े पर चढ़ी कुंडी उतार ली गई है
मगर दरवाज़ों को खोलने के लिए
ख़ुद ही चल कर जाना होगा
आँखों की पट्टी खोल दिए जाने पर भी
बीनाई को निगाह की आदत धीरे धीरे ही पड़ती है
होंटों पर लगी मोहरें हट जाने पर भी
बोलने के लिए ज़बान को अल्फ़ाज़ की मश्क़ करानी होती है
आज़ाद तो दिमाग़ को होना है
सिर्फ़ जिस्म की आज़ादी कोई मा'नी नहीं रखती
सर की चादर से अपनी बरहनगी अपने हाथों ढकनी होगी
सर पर ताज है और पैरों में बेड़ियाँ
क्या अजीब नहीं लगता
ज़िना से ले कर आधी गवाही तक
बे-शक ये चार्ज-शीट बहुत लम्बी है
लेकिन मुझे इस के बारे में सोचने की
न फ़ुर्सत है न ज़रूरत
वैसे भी ये चार्ज-शीट मेरी अदम-मौजूदगी में तय्यार की गई थी
दुश्नाम मिले या इनआ'म मुझे इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
मुझे तो अपने आज़ाद हाथों से अपने पैरों की बेड़ियाँ हटा कर
इस मल्गजे अँधेरे को अपनी पलकों से बटोर कर
किनारे लगाना है
दरवाज़े तक जाना है
कि इन बंद पट्टों से बाहर एक खुली फ़ज़ा
मेरा इंतिज़ार कर रही है
जहाँ मैं कम-अज़-कम आज़ादी से साँस तो ले सकूँगी
हाँ मैं शहर में दाख़िल होने वाली पहली औरत हूँ
कहीं भी पहुँचने के लिए उठाया हुआ
पहला क़दम
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