ज़ुल्फ़ पर 20 बेहतरीन शेर
शायरी में ज़ुल्फ़ का
मौज़ू बहुत दराज़ रहा है। क्लासिकी शायरी में तो ज़ुल्फ़ के मौज़ू के तईं शायरों ने बे-पनाह दिल-चस्पी दिखाई है ये ज़ुल्फ़ कहीं रात की तवालत का बयानिया है तो कहीं उस की तारीकी का। और उसे ऐसी ऐसी नादिर तशबहों, इस्तिआरों और अलामतों के ज़रिये से बरता गया है कि पढ़ने वाला हैरान रह जाता है। शायरी का ये हिस्सा भी शोरा के बे-पनाह तख़य्युल की उम्दा मिसाल है।
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नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
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देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में
फिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा
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टैग्ज़: ख़्वाबऔर 1 अन्य
छेड़ती हैं कभी लब को कभी रुख़्सारों को
तुम ने ज़ुल्फ़ों को बहुत सर पे चढ़ा रक्खा है
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इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी
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फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
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टैग्ज़: ज़ुल्फ़और 1 अन्य
बाल अपने उस परी-रू ने सँवारे रात भर
साँप लोटे सैकड़ों दिल पर हमारे रात भर
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