ज़िंदगी पर ग़ज़लें
ज़िंदगी को परिभाषित करना
मुहाल है । शायद इसलिए शाइर ज़िंदगी को जितने ज़ावियों और सूरतों में देखता है, उस को अपने तौर पर पेश करता है । ज़िंदगी के हुस्न की कहानी हो या उस की बद-सूरती का बयान सब को उर्दू शाइरी अपने दामन में समेट कर चलती है । इस का अंदाज़ा यहाँ प्रस्तुत संकलन से लगाया जा सकता है ।