तंज़ पर दोहे
तंज़ के साथ उमूमन मिज़ाह
का लफ़्ज़ जुड़ा होता है क्यूँ कि गहरा तंज़ तभी क़ाबिल-ए-बर्दाश्त और एक मानी में इस्लाही होता है जब उस का इज़हार इस तौर पर किया जाए कि उस के साथ मिज़ाह का उन्सिर भी शामिल हो। तंज़िया पैराए में एक तख़्लीक़-कार अपने आस पास की दुनिया और समाज की ना-हमवारियों को निशाना बनाता है और ऐसे पहलुओं को बे-नक़ाब करता है जिन पर आम ज़िंदगी में नज़र नहीं जाती और जाती भी है तो उन पर बात करने का हौसला नहीं होता।
बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान
भीतर क्या क्या हो रहा ऐ दिल कुछ तो बोल
एक आँख रोए बहुत एक हँसे जी खोल