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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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साक़ी पर चित्र/छाया शायरी

आज के शराब पीने वाले

साक़ी को क्या जानें, उन्हें क्या पता साक़ी के दम से मयख़ाने की रौनक कैसी होती थी और क्यूँ मय-ख़्वारों के लिए साक़ी की आँखें शराब से भरे हुए जामों से ज़्यादा लज़्ज़त अंगेज़ीज़ और नशा-आवर होती थीं। अब तो साक़ी बार के बैरे में तब्दील हो गया है। मगर क्लासिकी शायरी में साक़ी का एक वसी पस-ए-मंज़र होता था। हमारा ये शेरी इंतिख़ाब आपको साक़ी के दिल-चस्प किरदार से मुतआरिफ़ कराएगा।

असर न पूछिए साक़ी की मस्त आँखों का

पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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