साक़ी पर ग़ज़लें
आज के शराब पीने वाले
साक़ी को क्या जानें, उन्हें क्या पता साक़ी के दम से मयख़ाने की रौनक कैसी होती थी और क्यूँ मय-ख़्वारों के लिए साक़ी की आँखें शराब से भरे हुए जामों से ज़्यादा लज़्ज़त अंगेज़ीज़ और नशा-आवर होती थीं। अब तो साक़ी बार के बैरे में तब्दील हो गया है। मगर क्लासिकी शायरी में साक़ी का एक वसी पस-ए-मंज़र होता था। हमारा ये शेरी इंतिख़ाब आपको साक़ी के दिल-चस्प किरदार से मुतआरिफ़ कराएगा।