लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इसमें कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को ख़तरे में डालते हैं।
पहले मज़हब सीनों में होता था आजकल टोपियों में होता है। सियासत भी अब टोपियों में चली आई है। ज़िंदाबाद टोपियाँ।
हिन्दुस्तान को उन लीडरों से बचाओ जो मुल्क की फ़िज़ा बिगाड़ रहे हैं और अवाम को गुमराह कर रहे हैं।
ये लोग जिन्हें उर्फ़-ए-आम में लीडर कहा जाता है, सियासत और मज़हब को लंगड़ा, लूला और ज़ख़्मी आदमी तसव्वुर करते हैं।
सियासत और मज़हब की लाश हमारे नामवर लीडर अपने कँधों पर उठाए फिरते हैं और सीधे सादे लोगों को जो हर बात मान लेने के आदी होते हैं ये कहते फिरते हैं कि वो इस लाश को अज़ सर-ए-नौ ज़िंदगी बख़्श रहे हैं।
मेहनत-कश मज़दूरों की सही नफ़सियात कुछ उनका अपना पसीना ही ब-तरीक़-ए-अहसन बयान कर सकता है। उसको दौलत के तौर पर इस्तेमाल कर के उस के पसीने की रौशनाई में क़लम डुबो-डुबो कर ग्रांडील लफ़्ज़ों में मंशूर लिखने वाले, हो सकता है बड़े मुख़्लिस आदमी हों, मगर माफ़ कीजिए मैं अब भी उन्हें बहरूपिया समझता हूँ।