बूढ़ी काकी
‘बूढ़ी काकी’ मानवीय भावना से ओत-प्रोत की कहानी है। इसमें उस समस्या को उठाया गया है जिसमें परिवार के बाक़ी लोग घर के बुज़ुर्गों से धन-दौलत लेने के लिए उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। इतना ही नहीं उनका तिरस्कार किया जाता है। उनका अपमान किया जाता है और उन्हें खाना भी नहीं दिया जाता है। इसमें भारतीय मध्यवर्गीय परिवारों में होने वाली इस व्यवहार का वीभत्स चित्र उकेरा गया है।
प्रेमचंद
एक बाप बिकाऊ है
कहानी अख़बार में छपे एक इश्तिहार से शुरू होती है जिसमें एक बाप का हुलिया बताते हुए उसके बिकने की सूचना होती है। इश्तिहार छपने के बाद कुछ लोग उसे खरीदने पहुँचते हैं मगर जैसे-जैसे उन्हें उसकी ख़ामियों के बारे में पता चलता है वे ख़रीदने से इंकार करते जाते हैं। फिर एक दिन अचानक एक बहुत बड़ा कारोबारी उसे ख़रीद लेता है और उसे अपने घर ले आता है। जब उसे पता चलता है कि ख़रीदा हुआ बाप एक ज़माने में बहुत बड़ा गायक था और एक लड़की के साथ उसकी दोस्ती भी थी तो कहानी एक दूसरा रुख़ इख़्तियार कर लेती है।
राजिंदर सिंह बेदी
पीतल का घंटा
एक ज़माने में क़ाज़ी इमाम हुसैन अवध के ताल्लुकादार थे, उनकी बहुत ठाट-बाट थी.। हर कोई उनसे मिलने आता था। अपनी शादी के वक़्त जब हीरो पहली बार उनसे मिला था तो उन्होंने उसे अपने यहाँ आने की दावत दी थी। अब एक अर्सा बाद उनके गाँव के पास से गुज़रते वक़्त बस ख़राब हो गई तो वह क़ाज़ी इमाम हुसैन के यहाँ चला गया। वहाँ उसने देखा कि क़ाज़ी साहब का तो हुलिया ही बदला हुआ है। कहाँ वह ठाट-बाट और कहाँ अब पैवंद लगे कपड़े पहने हैं। क़ाज़ी साहब के यहाँ इस समय इतनी गु़रबत है कि उन्हें मेहमान की मेहमान-नवाज़ी करने के लिए अपना मोहर लगा पीतल का घंटा तक बेच देना पड़ता है।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
कशमकश
"नैतिक मूल्यों के पतन का मातम है। बूढ्ढा मोहना दो हफ़्तों से बीमार है, अक्सर ऐसा लगता है कि वो मर जाएगा लेकिन फिर जी उठता है। उसके तीनों बेटे चाहते हैं कि वो जल्द से जल्द मर जाये। दो हफ़्ते बाद जब वो मर जाता है तो उसका जुलूस निकाला जाता है और उसके जुलूस से मीठे चने उठा कर एक औरत अपने बेटे को देती है और कहती है कि खा ले तेरी भी उम्र इतनी लंबी हो जाएगी। औरत को देखकर ट्राम का ड्राइवर, चेकर और एक बाबू भी दौड़ कर उन से छोहारे आदि लेकर खाते हैं।"
राजिंदर सिंह बेदी
ओल्ड एज होम
आराम-ओ-सुकून का तालिब एक ऐसे बूढ़े शख़्स की कहानी जो सोचता था कि रिटायरमेंट के बाद इत्मीनान से अपने घर में रहेगा, मज़े से अपनी पसंद की किताबें पढ़ेगा। लेकिन साथ रह रहे घर के दूसरे लोगों के अलावा अपने पोते-पोतियों के शोर-शराबे से उसे ऊब होने लगी और वह घर छोड़कर ओल्ड एज होम में रहने चला जाता है। वहाँ अपने से पहले रह रहे एक शख़्स का एक ख़त उसे मिलता है जिसमें वह अपने बच्चों को याद करके रोता है। उस ख़त को पढ़कर उसे अपने बच्चों की याद आती है और वह वापस घर लौट जाता है।
मिर्ज़ा अदीब
फ़ासले
एक ऐसे बूढ़े शख़्स की कहानी जो रिटायरमेंट के बाद घर में तन्हा रहते हुए बोर हो गया है और सुकून की तलाश में है। एक दिन वह घर से बाहर निकला तो गली में खेलते बच्चों को देख कर और सामान बेचते दुकानदारों से बात करना उसे अच्छा लगा। इस तरह वह वहाँ रोज़ आने लगा और अपना वक़्त गुज़ारने लगा। एक दिन इंग्लैंड से वापस आया उसका बेटा उसे अपने साथ ले जाता है। काफ़ी वक़्त के बाद जब वह वापस आता है और फिर से अपनी उस गली में निकलता है तो उसे एहसास होता है कि उसके लिए लोगों के मिज़ाज में तब्दीली आ गई है, शायद वह उनके लिए एक अजनबी बन चुका था।