किताब पर ग़ज़लें
किताब को मर्कज़ में रख
कर की जाने वाली शायरी के बहुत से पहलू हैं। किताब महबूब के चेहरे की तशबीह में भी काम आती है और आम इंसानी ज़िंदगी में रौशनी की एक अलामत के तौर पर भी उस को बरता गया है। ये शायरी आपको इस तौर पर भी हैरान करेगी कि हम अपनी आम ज़िंदगी में चीज़ों के बारे में कितना महदूद सोचते हैं और तख़्लीक़ी सतह पर वही छोटी छोटी चीज़ें मानी-ओ-मौज़ूआत के किस क़दर वसी दायरे को जन्म दे देती हैं। किताब के इस हैरत-कदे में दाख़िल होइए।