आँखें
अतृप्त भावनाओं की कहानी है। आँखों की रोशनी से वंचित हनीफ़ा को वह अस्पताल में देखता है तो उसकी पुरकशिश आँखों पर फ़िदा हो जाता है। हनीफ़ा के रवय्ये से महसूस होता है कि यह अस्पताल उसके लिए बिल्कुल नई जगह है, इसलिए वह उसकी मदद के लिए आगे आता है। उसकी पुरकशिश आँखों की गहराई में डूबे रहने के लिए झूट बोल कर कि उसका घर भी हनीफ़ा के घर के रास्ते में है, वह उसके साथ घर तक जाता है। मंज़िल पर पहुंचने के बाद जब वह तांगे से उतरने के लिए बदरू का सहारा लेती है तब पता चलता है कि यह आँख की रौशनी से वंचित है और फिर...
सआदत हसन मंटो
अपने दुख मुझे दे दो
कहानी एक ऐसे जोड़े की दास्तान बयान करती है, जिसकी नई-नई शादी हुई है। सुहागरात में शौहर के दुखों को सुनकर बीवी उसके सभी दुख माँग लेती है। मगर वह उससे कुछ नहीं माँगता है। बीवी ने घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। उम्र के आख़िरी पड़ाव पर एक रोज़ शौहर को जब इस बात का एहसास होता है तो वह उससे पूछता है कि उसने ऐसा क्यों किया? वह कहती है कि मैंने तुमसे तुम्हारे सारे दुख माँग लिए थे मगर तुमने मुझसे मेरी खुशी नहीं माँगी। इसलिए मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकी।
राजिंदर सिंह बेदी
गुरमुख सिंह की वसीयत
सरदार गुरूमुख सिंह को अब्द-उल-हई जज ने एक झूठे मुक़द्दमे से नजात दिलाई थी। उसी एहसान के बदले में गुरूमुख सिंह ईद के दिन जज साहब के यहाँ सेवइयाँ लेकर आता था। एक साल जब दंगों ने पूरे शहर में आतंक फैला रखा था, जज अबदुलहई फ़ालिज की वजह से मृत्यु शैया पर थे और उनकी जवान बेटी और छोटा बेटा हैरान परेशान थे कि इसी ख़ौफ़ व परेशानी के आलम में सरदार गुरूमुख सिंह का बेटा सेवइयाँ लेकर आया और उसने बताया कि उसके पिता जी का देहांत हो गया है और उन्होंने जज साहब के यहाँ सेवइयाँ पहुँचाने की वसीयत की थी। गुरूमुख सिंह का बेटा जब वापस जाने लगा तो बलवाइयों ने रास्ते में उससे पूछा कि अपना काम कर आए, उसने कहा कि हाँ, अब जो तुम्हारी मर्ज़ी हो वो करो।
सआदत हसन मंटो
बाबू गोपीनाथ
वेश्याओं और उनके परिवेश को दर्शाने वाली इस कहानी में मंटो ने उन पात्रों के बाहरी और आन्तरिक स्वरूप को उजागर करने की कोशिश की है जिनकी वजह से ये माहौल पनपता है। लेकिन इस अँधेरे में भी मंटो इंसानियत और त्याग की हल्की सी किरन ढूंढ लेता है। बाबू गोपी नाथ एक रईस आदमी है जो ज़ीनत को 'अपने पैरों पर खड़ा करने' के लिए तरह तरह के जतन करता है और आख़िर में जब उसकी शादी हो जाती है तो वो बहुत ख़ुश होता है और एक अभिभावक की भूमिका अदा करता है।
सआदत हसन मंटो
उसका पति
यह कहानी शोषण, इंसानी अक़दार और नैतिकता के पतन की है। भट्टे के मालिक का अय्याश बेटा सतीश गाँव की ग़रीब लड़की रूपा को अपनी हवस का शिकार बनाकर छोड़ देता है। गाँव वालों को जब उसके गर्भवती होने की भनक लगती है तो रूपा का होने वाला ससुर उसकी माँ को बेइज्ज़त करता है और रिश्ता ख़त्म कर देता है। मामले को सुलझाने के लिए नत्थू को बुलाया जाता है जो समझदार और सूझबूझ वाला समझा जाता है। सारी बातें सुनने के बाद वह रूपा को सतीश के पास ले जाता है और कहता है कि वह रूपा और अपने बच्चे को संभाल ले लेकिन सतीश सौदा करने की कोशिश करता है जिससे रूपा भाग जाती है और पागल हो जाती है।
सआदत हसन मंटो
कालू भंगी
’कालू भंगी’ समाज के सबसे निचले तबक़े की दास्तान-ए-हयात है। उसका काम अस्पताल में हर रोज़ मरीज़ों की गंदगी को साफ़ करना है। वह तकलीफ़ उठाता है जिसकी वजह पर दूसरे लोग आराम की ज़िंदगी जीते हैं। लेकिन किसी ने भी एक लम्हे के लिए भी उसके बारे में नहीं सोचा। ऐसा लगता है कि कालू भंगी का महत्व उनकी नज़र में कुछ भी नहीं। वैसे ही जैसे जिस्म शरीर से निकलने वाली ग़लाज़त की वक़अत नहीं होती। अगर सफ़ाई की अहमियत इंसानी ज़िंदगी में है, तो कालू भंगी की अहमियत उपयोगिता भी मोसल्लम है।
कृष्ण चंदर
उल्लू का पट्ठा
क़ासिम एक दिन सुबह सो कर उठता है तो उसके अंदर यह शदीद ख्वाहिश जागती है कि वह किसी को उल्लू का पठ्ठा कहे। बहुत से ढंग और अवसर सोचने के बाद भी वह किसी को उल्लू का पठ्ठा नहीं कह पाया और फिर दफ़्तर के लिए निकल पड़ता है। रास्ते में एक लड़की की साड़ी साईकिल के पहिये में फंस जाती है, जिसे वह निकालने की कोशिश करता है लेकिन लड़की को नागवार गुज़रता है और वह उसे "उल्लू का पठ्ठा" कह कर चली जाती है।
सआदत हसन मंटो
क़र्ज़ की पीते थे...
"मिर्ज़ा ग़ालिब की शराब नोशी और क़र्ज़ अदा न करने के बाइस मामला अदालत में पहुँच जाता है। वहाँ मुफ़्ती सद्र-उद-दीन आज़ुर्दा अदालत की कुर्सी पर बिराजमान होते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़लती साबित हो जाने के बाद मुफ़्ती सद्र-उद-दीन जुर्माना की सज़ा देते हैं और अपनी जेब-ए-ख़ास से जुर्माना अदा भी कर देते हैं।"
सआदत हसन मंटो
ज़ेवर का डिब्बा
ठाकुर साहब के बेटे वीरेंद्र को तीस रूपये महीना ट्यूशन के साथ चंद्र प्रकाश को रहने के लिए मुफ़्त का मकान भी मिल गया था। ठाकुर साहब उस पर काफ़ी भरोसा करते थे। घर में बेटे की शादी की बात चली तो सारी ज़िम्मेदारी चंद्र प्रकाश को ही दी गई। एक रोज़ हवेली से गहनों का डिब्बा चोरी हो गया। इसके बाद चंद्र प्रकाश ने वह मकान छोड़ दिया। मगर समस्या तो तब शुरू हुई जब उसकी बीवी को पता चला कि ज़ेवर का डिब्बा किसी और ने नहीं चंद्र प्रकाश ने ही चुराया है।
प्रेमचंद
बासित
मुख़्तलिफ़ वजहों से बासित उस लड़की से शादी के लिए राज़ी नहीं था जिस लड़की से उसकी माँ उसकी शादी कराना चाहती थी, अंततः उसने हथियार डाल दिए। शादी के बाद बासित की बीवी सईदा हर वक़्त खौफ़ज़दा और गुम-सुम सी रहती थी। इस बात को शुरू में बासित ने नये माहौल और नये घर की झिझक समझा था, लेकिन एक दिन गु़सलखाने में जब सईदा का हमल ज़ाए‘अ हुआ तब बासित को सही सूरत-ए-हाल का अंदाज़ा हुआ। बासित ने सईदा को माफ़ कर दिया लेकिन बासित की माँ अधूरा बच्चा देखकर बर्दाश्त न कर सकी और दुनिया से चल बसी।
सआदत हसन मंटो
क्वारंटीन
कहानी में एक ऐसी वबा के बारे में बताया गया है जिसकी चपेट में पूरा इलाक़ा है और लोगों की मौत निरंतर हो रही है। ऐसे में इलाके़ के डॉक्टर और उनके सहयोगी की सेवाएं प्रशंसनीय हैं। बीमारों का इलाज करते हुए उन्हें एहसास होता है कि लोग बीमारी से कम और क्वारंटीन से ज़्यादा मर रहे हैं। बीमारी से बचने के लिए डॉक्टर खु़द को मरीज़ों से अलग कर रहे हैं जबकि उनका सहयोगी भागू भंगी बिना किसी डर और ख़ौफ़ के दिन-रात बीमारों की सेवा में लगा हुआ है। इलाक़े से जब महामारी ख़त्म हो जाती है तो इलाक़े के गणमान्य की तरफ़ से डॉक्टर के सम्मान में जलसे का आयोजन किया जाता है और डॉक्टर के काम की तारीफ़ की जाती है लेकिन भागू भंगी का ज़िक्र तक नहीं होता।
राजिंदर सिंह बेदी
पाँच दिन
बंगाल के अकाल की मारी हुई सकीना की ज़बानी एक बीमार प्रोफे़सर की कहानी बयान की गई है, जिसने अपने चरित्र को बुलंद करने के नाम पर अपनी फ़ित्री ख़्वाहिशों को दबाए रखा। सकीना भूख से बेचैन हो कर एक दिन जब उसके घर में चली आती है तो प्रोफे़सर कहता है कि तुम इसी घर में रह जाओ, मैं दस बरस तक स्कूल में लड़कियों को पढ़ाता रहा इसलिए उन्हीं बच्चियों की तरह तुम भी एक बच्ची हो। लेकिन मरने से पाँच दिन पहले वह स्वीकार करता है कि उसने हमेशा सकीना सहित उन सभी लड़कियों को जिन्हें उसने पढ़ाया है हमेशा ग़लत निगाहों से देखा है।
सआदत हसन मंटो
पंचायत
‘पंचायत’ कहानी में यह बताया है कि अनुकूल परिस्थितियों के आने पर मनुष्य का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह अपनी कुवृत्तियों का त्याग करके सद्वृत्तियों की ओर अग्रसर होता है। इस कहानी में प्रेमचंद्र ने आशा और विश्वास का भी सन्देश दिया है। यदि मनुष्य में बुराई आ गयी है, यदि ग्रामीण जीवन दूषित हो गया है तो निराश होने का कोई कारण नहीं है, प्रयास करने पर ग्रामीण जीवन को फिर सुखी बनाया जा सकता है और हृदय-परिवर्तन के द्वारा मनुष्य के समस्त दोषों को दूर करना संभव है।
प्रेमचंद
ताई इसरी
ग्रैंड मेडिकल कॉलेज कलकत्ता से लौटने पर पहली बार उसकी मुलाक़ात ताई इसरी से हुई थी। ताई इसरी ने अपनी पूरी ज़िंदगी अकेली ही गुज़ार दी। वह शादी-शुदा हो कर भी एक तरह से कुँवारी थी। उनका शौहर जालंधर में रहता था और ताई इसरी लाहौर में। मगर अकेली होने के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। और ज़िंदगी को पूरे भरपूर अंदाज़ में जिया।
कृष्ण चंदर
रौशनी
आई.सी.एस. का इम्तिहान पास कर के वह भारत लौटता है। उसे महसूस होता है कि मग़्रिब के मुक़ाबले भारत बहुत बद-हाल है। एक रोज़ सफ़र के दौरान वह भयानक तूफ़ान में फँस जाता है। उसे एक ग़रीब औरत मिलती है। पति की मौत के बाद अकेले ही अपने बच्चों को पाल रही है। बिना किसी की मदद के। वह उस औरत की ख़ुद्दारी को देखता है और उसके सभी विचार बदल जाते हैं।
प्रेमचंद
माई नानकी
इस कहानी में भारत विभाजन के परिणाम-स्वरूप पाकिस्तान जाने वाले प्रवासियों की समस्या को बयान किया गया है। माई नानकी एक मशहूर दाई थी जो पच्चीस लोगों का ख़र्च पूरा करती थी। हज़ारों की मालियत का ज़ेवर और भैंस वग़ैरा छोड़कर पाकिस्तान आई लेकिन यहाँ उसका कोई हाल पूछने वाला नहीं रहा। तंग आकर वो ये बद-दुआ करने लगी कि अल्लाह एक बार फिर सबको प्रवासी कर दे ताकि उनको मालूम तो हो कि प्रवासी किस को कहते हैं।
सआदत हसन मंटो
एक बाप बिकाऊ है
कहानी अख़बार में छपे एक इश्तिहार से शुरू होती है जिसमें एक बाप का हुलिया बताते हुए उसके बिकने की सूचना होती है। इश्तिहार छपने के बाद कुछ लोग उसे खरीदने पहुँचते हैं मगर जैसे-जैसे उन्हें उसकी ख़ामियों के बारे में पता चलता है वे ख़रीदने से इंकार करते जाते हैं। फिर एक दिन अचानक एक बहुत बड़ा कारोबारी उसे ख़रीद लेता है और उसे अपने घर ले आता है। जब उसे पता चलता है कि ख़रीदा हुआ बाप एक ज़माने में बहुत बड़ा गायक था और एक लड़की के साथ उसकी दोस्ती भी थी तो कहानी एक दूसरा रुख़ इख़्तियार कर लेती है।
राजिंदर सिंह बेदी
मेरा बच्चा
किसी भी औरत के पहला बच्चा होता है तो वह हर रोज़ नए-नए तरह के एहसासात से गुज़रती है। उसे दुनिया की हर चीज़ नए रंग-रूप में नज़र आने लगती है। उसकी चाहत, मोहब्बत और तवज्जोह सब कुछ उस बच्चे पर केंद्रित हो कर रह जाती है। एक माँ अपने बच्चे के बारे में क्या-क्या सोचती है वही सब इस कहानी में बयान किया गया है।
कृष्ण चंदर
मिस्टर हमीदा
यह कहानी एक एसी औरत की है जिसके चेहरे पर मर्दों की तरह दाढ़ी आती है। राशिद ने उसे पहली बार बस स्टैंड पर देखा था और वह उसे देखकर इतना हैरान हुआ था कि उसके होश-ओ-हवास ही गुम हो गए थे। दूसरी बार उसने उसे कॉलेज में देखा था। कॉलेज में लड़के उसका मज़ाक़ उड़ाया करते थे और दाढ़ी के कारण उन्होंने उसका नाम मिस्टर हमीदा रख दिया था। राशिद को लड़कों की ये हरक़तें बहुत नापसंद थी। उसने हमीदा से दोस्ती करनी चाही, लेकिन उसने इंकार कर दिया। एक बार हमीदा बीमार पड़ी तो उसने अपनी शेव कराने के लिए राशिद को बुला भेजा और इस तरह वो दोनों दोस्त हो कर एक रिश्ते में आ गए।
सआदत हसन मंटो
माही-गीर
इस कहानी में एक ग़रीब मछुवारे मियां-बीवी के हमदर्दी के जज़्बे को बयान किया गया है। मछुवारे के पाँच बच्चे हैं और वो रात-भर समुंद्र से मछलियाँ पकड़ कर बड़ी मुश्किल से घर का ख़र्च चलाता है। एक रात उसकी पड़ोसन बेवा का इंतक़ाल हो जाता है। मछुवारे की बीवी उसके दोनों बच्चों को उठा लाती है। सुबह मछुवारे को इस हादसे की इत्तिला देती है और बताती है कि दो बच्चे उसकी लाश के बराबर लेटे हुए हैं तो मछुवारा कहता है पहले पाँच बच्चे थे अब सात हो गए, जाओ उन्हें ले आओ। मछुवारे की बीवी चादर उठा कर दिखाती है कि वो दोनों बच्चे यहाँ हैं।
सआदत हसन मंटो
कारमन
अमीर ख़ानदान के एक नौजवान द्वारा एक ग़रीब लड़की के शोषण की एक रिवायती कहानी है, जो लड़की के निःस्वार्थ प्रेम की त्रासदी है। लेकिन इस कहानी में बेहद सादगी, दिलकशी और आकर्षण है। आख़िर में पाठक तो कहानी के अंजाम से परिचित हो जाता है, लेकिन कारमन नहीं हो पाती है। सच कहा जाए तो इसी में उसकी भलाई भी है।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
पीतल का घंटा
एक ज़माने में क़ाज़ी इमाम हुसैन अवध के ताल्लुकादार थे, उनकी बहुत ठाट-बाट थी.। हर कोई उनसे मिलने आता था। अपनी शादी के वक़्त जब हीरो पहली बार उनसे मिला था तो उन्होंने उसे अपने यहाँ आने की दावत दी थी। अब एक अर्सा बाद उनके गाँव के पास से गुज़रते वक़्त बस ख़राब हो गई तो वह क़ाज़ी इमाम हुसैन के यहाँ चला गया। वहाँ उसने देखा कि क़ाज़ी साहब का तो हुलिया ही बदला हुआ है। कहाँ वह ठाट-बाट और कहाँ अब पैवंद लगे कपड़े पहने हैं। क़ाज़ी साहब के यहाँ इस समय इतनी गु़रबत है कि उन्हें मेहमान की मेहमान-नवाज़ी करने के लिए अपना मोहर लगा पीतल का घंटा तक बेच देना पड़ता है।
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
रौग़नी पुतले
राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे पर बात करती कहानी, जो शॉपिंग आर्केड में रखे रंगीन पुतलों के गिर्द घूमती है। जिनके आस-पास सारा दिन तरह-तरह के फै़शन परस्त लोग और नौजवान लड़के-लड़कियाँ घूमते रहते हैं। मगर रात होते ही वे पुतले आपस में गुफ़्तगू करते हुए मौजूदा हालात पर अपनी राय ज़ाहिर करते हैं। सुबह में आर्केड का मालिक आता है और वह कारीगरों को पूरे शॉपिंग सेंटर और तमाम पुतलों को पाकिस्तानी रंग में रंगने का हुक्म सुनाता है।
मुमताज़ मुफ़्ती
जान मोहम्मद
इंसान की नफ़्सियाती पेचीदगियों और तह दर तह पोशीदा शख़्सियत को बयान करती हुई कहानी है। जान मोहम्मद मंटो के बीमारी के दिनों में एक मुख़लिस तीमारदार के रूप में सामने आया और फिर बेतकल्लुफी से मंटो के घर आने लगा, लेकिन असल में वह मंटो के पड़ोस की लड़की शमीम के चक्कर में आता था। एक दिन शमीम और जान मोहम्मद घर से फ़रार हो जाते हैं, तब उसकी असलियत पता चलती है।
सआदत हसन मंटो
गुलामी
यह एक रिटायर्ड आदमी की ज़िंदगी की कहानी है। पोलहू राम सहायक पोस्ट मास्टर के पद से रिटायर हो कर घर आता है तो पहले पहल तो उसकी ख़ूब आव भगत होती है, लेकिन रफ़्ता-रफ़्ता उसके भजन, घर के कामों में दख़ल-अंदाज़ी की वजह से लड़के, बहू और पत्नी तक उससे ऊब जाते हैं। एक दिन जब वो पेंशन लेने जाता है तो उसे नोटिस बोर्ड से पता चलता है कि डाकख़ाने को एक्स्ट्रा डिपार्टमेंटल डाकख़ाने की ज़रूरत है जिसकी तनख़्वाह पच्चीस रुपये है। पोलहू राम यह नौकरी कर लेता है लेकिन काम के दौरान जब उस पर दमा का दौरा पड़ता है तो लोग दया करते हुए कहते हैं, डाकख़ाना क्यों नहीं इस ग़रीब बूढ़े को पेंशन दे देता?
राजिंदर सिंह बेदी
आधे चेहरे
कहानी एक ऐसे नौजवान के गिर्द घूमती है जो मिस आईडेंटिटी का शिकार है। एक दिन वह एक डॉक्टर के पास आता है और उसे अपनी हालत बताते हुए कहता है कि जब वह मोहल्ले में होता है तो हमीद होता है मगर जब वह कॉलेज में जाता है तो अख़्तर हो जाता है। अपनी यह कैफ़ियत उसे कभी पता न चलती अगर बीते दिन एक हादसा न होता। तभी से उसकी समझ नहीं आ रहा है कि वह कौन है? वह डॉक्टर से सवाल करता है कि वह उसे बताए कि वह हक़ीक़त में क्या है?
मुमताज़ मुफ़्ती
कीमिया-गर
यह तुर्की से हिंदुस्तान में आ बसे एक हकीम की कहानी है, जो अपने पूरे खु़लूस और अच्छे स्वभाव के बावजूद भी यहाँ की मिट्टी में घुल मिल नहीं पाता। गाँव की हिंदु आबादी उसका पूरा सम्मान करती है, मगर वह उन्हें कभी अपना महसूस नहीं कर पाता है। फिर गाँव में हैज़ा फैल जाता है और वह अपने बीवी बच्चों को लेकर गाँव छोड़ देता है। रात में उसे सपने में कीमियागर दिखाई देता है, जिसके साथ की गुफ़्तुगू उसके पूरे नज़रिए को बदल देती है और वह वापस गाँव लौटकर लोगों के इलाज में लग जाता है।
मोहम्मद मुजीब
बुक्की
कलकत्ता के एक सिनेमा काउंटर पर टिकट बेचती एक ऐसी लड़की की कहानी, जो एक्स्ट्रा चवन्नी ले कर नौजवानों और कुंवारों को लड़कियों के बग़ल वाली सीट देती है। उस रोज़ उसने आख़िरी टिकट एक काले और गंवार से दिखते लड़के को दिया था। शो के बाद जब उसने उससे बात की तो पता चला कि वह किसी गाँव से कलकत्ता देखने आया है। बातचीत के दौरान लड़की को एहसास होता है कि वह सचमुच कुछ भी नहीं जानता। वह उसे बताती है कि कलकत्ता एक औरत की तरह है और उसे समझाने के लिए वह उसे अपने साथ ले जाती है।
राजिंदर सिंह बेदी
डालन वाला
यह कहानी बचपन की यादों के सहारे अपने घर और घर के वसीले से एक पूरे इलाक़े की, और उस इलाक़े द्वारा विभिन्न व्यक्तियों के जीवन की चलती-फिरती तस्वीरें पेश करती है। समाज के अलग-अलग वर्गों से सम्बंध रखने वाले, पृथक आस्थाएं और विश्वास रखने वाले, विभन्न लोग हैं जो अपनी-अपनी समस्याओं और मर्यादाओं में बंधे हैं।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
ख़ानदानी कुर्सी
एक ऐसे शख़्स की कहानी जो उन्नीस बरस बाद अपने घर वापस लौटता है। इतने अर्से में उसका गाँव एक क़स्बे में बदल गया है और जो लोग उसके खेतों में काम किया करते थे अब उनकी भी ज़िंदगी बदल गई है और ख़ुशहाल हैं। हवेली में घूमता हुआ वह अपने पुराने कमरे में गया तो उसे वहाँ एक कुर्सी मिली जो किसी ज़माने में ख़ानदान की शान हुआ करती थी, अब कबाड़ के ढ़ेर में पड़ी थी। कुर्सी की ये हालत और ख़ानदान की पुरानी यादें उसे इस हाल में ले आती हैं कि वो कुर्सी से लिपटा हुआ अपनी आख़िरी साँसें लेने लगता है।
मिर्ज़ा अदीब
गुल-ए-ख़ारिस्तान
यह एक जोशीले नौजवान की कहानी है, जो बदलाव को केवल शब्दों तक सीमित नहीं करता, बल्कि उसे हक़ीक़त भी कर दिखाता है। दीननाथ आर्य समाज समिति का सदस्य होता है और वह सभा-जलसों में समाज में बदलाव के लिए तक़रीरें करता है। एक रोज़़ जब एक लड़की उस से मदद माँगने आती है, तो वह अपनी जान की बाज़ी लगाकर उसकी हिफ़ाज़त करता है।
सुदर्शन
हमदोश
"दुनिया की रंगीनी और बे-रौनक़ी के तज़्किरे के साथ इंसान की ख़्वाहिशात को बयान किया गया है। शिफ़ाख़ाने के मरीज़ शिफ़ाख़ाने के बाहर की दुनिया के लोगों को देखते हैं तो उनके दिल में शदीद क़िस्म की ख़्वाहिश अंगड़ाई लेती है कि वो कभी उनके बराबर हो सकेंगे या नहीं। कहानी का रावी एक टांग कट जाने के बावजूद शिफ़ायाब हो कर शिफ़ाख़ाने से बाहर आ जाता है और दूसरे लोगों के बराबर हो जाता है लेकिन उसका एक साथी मुग़ली, जिसे बराबर होने की शदीद तमन्ना थी और जो धीरे धीरे ठीक भी हो रहा था, मौत के मुँह में चला जाता है।"
राजिंदर सिंह बेदी
सबसे छोटा ग़म
यह एक ऐसी दुखियारी औरत की कहानी है जो अपने हालात से परेशान होकर हज़रत शेख़ सलीम चिश्ती की दरगाह पर जाती है। वह यहाँ उस धागे को ढूंढ़ती है जो उसने सालों पहले उस शख़्स के साथ बाँधा था जिससे वह मोहब्बत करती थी और जो अब उसका था। दरगाह पर और भी बहुत से परेशान हाल मर्द-औरतें हाज़िरी दे रहे थे। वह औरत उन हाज़िरीन की परेशानियों को देख कर दिल ही दिल में सोचती है कि उनके दुखों के आगे उसका ग़म कितना छोटा है।
आबिद सुहैल
मन की मन में
औरत के हसद और डाह के जज़्बे पर मब्नी कहानी है। माधव बहुत ही शरीफ़ इंसान था जो दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। वो एक बेवा अम्बो को बहन मान कर उसकी मदद करता था, जिसे उसकी बीवी कलकारनी नापसंद करती थी और उसे सौत समझती थी। ठीक मकर संक्रांत के दिन माधव कलकारनी से बीस रुपये लेकर जाता है कि उससे पाज़ेब बनवा लाएगा लेकिन उन रुपयों से वो अम्बो का क़र्ज़ लाला को अदा कर देता है। इस जुर्म के नतीजे में कलकारनी रात में माधव पर घर के दरवाज़े बंद कर लेती है और माधव निमोनिया से मर जाता है। मरते वक़्त वो कलकारनी को वसीयत करता है कि वो अम्बो का ख़्याल रखे लेकिन अगले बरस संक्रांत के दिन जब अम्बो उसके यहाँ आती है तो वो सौत और मनहूस समझ कर उसे घर से भगा देती है और फिर अम्बो ग़ायब ही जाती है।
राजिंदर सिंह बेदी
ज़ालिम मोहब्बत
यह एक औरत और दो मर्दों की कहानी है। पहला मर्द औरत से बेपनाह मोहब्बत करता है और दूसरे मर्द को यह ख़बर तक नहीं कि वह औरत उसे चाहती है। एक दिन वह दूसरे मर्द के पास जाती है और उसके सामने अपने दिल की बात को एक कहानी के प्लॉट के रूप में पेश करते हुए उस उलझन का हल उस मर्द से पूछती है।
हिजाब इम्तियाज़ अली
शोले
यह एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो एक घर में गर्वनेंस की नौकरी करते हुए अपने बॉस से प्यार करने लगती है। हालांकि उसकी मंगनी हो चुकी है। उसका बॉस भी जानता है। मगर वह अपने जज़्बात को छुपा नहीं पाती। बॉस जानता है कि वह उससे मोहब्बत करती है, लेकिन वह इंकार कर देता है। जिस रोज़ उसकी डोली उठती है तब वह सज्दे में गिरकर सिसक-सिसक कर कहता है कि मुझे तुमसे मोहब्बत है।
वाजिदा तबस्सुम
मोहब्बत का दम-ए-वापसीं
यह मरियम नाम की एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसने अपनी ज़िंदगी में केवल अपने शौहर से ही मोहब्बत की है। लेकिन जब उसे पता चलता है कि उसके शौहर के किसी और औरत से भी सम्बंध हैं तो ग़ुस्से से आग-बगूला हो जाती है। वह शौहर से उस औरत के बारे में पूछती है तो उसके जवाब में वह मरियम को ख़ुद उस औरत से मिलाने के लिए ले जाता है।
मजनूँ गोरखपुरी
भिकारन
एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो बचपन में भीख माँगकर गुज़ारा किया करती थी। एक बार उसे एक लड़का मिला और उसे अपने घर ले गया। वहाँ उसके लड़के के पिता ने कहा कि यदि वह लड़की शरीफ़ ख़ानदान की होती तो भीख माँगकर गुज़ारा क्यों करती। उनकी यह बात उस लड़की को इतनी लगी कि वह पढ़-लिख कर शहर की सबसे प्रसिद्ध लेडी डॉक्टर बन गई।
आज़म कुरेवी
एक अमरीकन लेडी की सरगुज़श्त
यह अमेरिकी की एक मशहूर एक्ट्रेस की कहानी है, जिसे एक हिंदुस्तानी से मोहब्बत हो जाती है। जब उस ऐक्ट्रेस को उस हिंदुस्तानी की वास्तविकता के बारे में पता चलता है तो उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल जाती है। वह अपनी सारी दौलत हिन्दुस्तान में शिक्षा के लिए दान कर देती है और यहीं अपनी अंतिम सांस लेती है।
सुदर्शन
दुल्हन की डायरी
एक ऐसी नई-नवेली दुल्हन की कहानी है, जो ससुराल जाने के बाद शुरू-शुरू में तो हर किसी की बहुत तारीफ़ करती है। मगर जैसे-जैसे वक़्त बीतना शुरू होता है उसे हर किसी में कमियाँ दिखाई देने लगती हैं। हद तो तब हो जाती है जब वह अपने पति और जेठानी पर शक करने लगती है। जब उसे हक़ीक़त का पता चलता है तो अपना सर पीट लेती है।