अन्न-दाता
बंगाल में जब अकाल पड़ा तो शुरू में हुक्मरानों ने इसे क़हत मानने से ही इंकार कर दिया। वे हर रोज़ शानदार दावतें उड़ाते और उनके घरों के सामने भूख से बेहाल लोग दम तोड़ते रहते। वह भी उन्हीं हुक्मरानों में से एक था। शुरू में उसने भी दूसरों की तरह समस्या से नज़र चुरानी चाही। मगर फिर वह उनके लिए कुछ करने के लिए उतावला हो गया। कई योजनाएँ बनाई और उन्हें अमल में लाने के लिए संघर्ष करने लगा।
कृष्ण चंदर
पाँच दिन
बंगाल के अकाल की मारी हुई सकीना की ज़बानी एक बीमार प्रोफे़सर की कहानी बयान की गई है, जिसने अपने चरित्र को बुलंद करने के नाम पर अपनी फ़ित्री ख़्वाहिशों को दबाए रखा। सकीना भूख से बेचैन हो कर एक दिन जब उसके घर में चली आती है तो प्रोफे़सर कहता है कि तुम इसी घर में रह जाओ, मैं दस बरस तक स्कूल में लड़कियों को पढ़ाता रहा इसलिए उन्हीं बच्चियों की तरह तुम भी एक बच्ची हो। लेकिन मरने से पाँच दिन पहले वह स्वीकार करता है कि उसने हमेशा सकीना सहित उन सभी लड़कियों को जिन्हें उसने पढ़ाया है हमेशा ग़लत निगाहों से देखा है।
सआदत हसन मंटो
तीन मोटी औरतें
यह अभिजात्य वर्ग की महिलाओं की दिलचस्पियों, रुचियों और उनकी व्यस्तताओं के वर्णन पर आधारित एक श्रेष्ठ कहानी है। इस कहानी में तीन ऐसी औरतें एक साथ एकत्र हैं जिनकी दोस्ती की वजह सिर्फ़ उनका मोटापा है। वो साल में एक महीने के लिए मोटापा कम करने के उद्देश्य से करबसाद जाती हैं लेकिन वहाँ भी वो एक दूसरे की लालच में तैलीय भोजन से परहेज़ नहीं करतीं और वर्षों गुज़र जाने के बाद भी उनके मोटापे में कोई फ़र्क़ नहीं आता।
सआदत हसन मंटो
माई नानकी
इस कहानी में भारत विभाजन के परिणाम-स्वरूप पाकिस्तान जाने वाले प्रवासियों की समस्या को बयान किया गया है। माई नानकी एक मशहूर दाई थी जो पच्चीस लोगों का ख़र्च पूरा करती थी। हज़ारों की मालियत का ज़ेवर और भैंस वग़ैरा छोड़कर पाकिस्तान आई लेकिन यहाँ उसका कोई हाल पूछने वाला नहीं रहा। तंग आकर वो ये बद-दुआ करने लगी कि अल्लाह एक बार फिर सबको प्रवासी कर दे ताकि उनको मालूम तो हो कि प्रवासी किस को कहते हैं।
सआदत हसन मंटो
मीठा माशूक़
यह उस वक़्त की कहानी है जब रेल ईजाद नहीं हुई थी और लोग पैदल, ऊँट या फिर घोड़ों पर सफ़र किया करते थे। लखनऊ शहर में एक शख़्स पर मुक़दमा चल रहा था और वह शख़्स शहर से काफ़ी दूर रहता था। मुक़दमे की तारीख़ पर हाज़िर होने के लिए वह अपने क़ाफ़िले के साथ शहर के लिए रवाना हो गया। साथ में नज़राने के तौर पर मिठाइयों का एक टोकरा भी था। पूरे रास्ते उस 'मीठे माशूक़' की वजह से उन्हें कुछ ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा कि वहआराम से सो तक नहीं सके।