यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की
अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
तुम ऐसा कर नहीं सकते तो ऐसा हो नहीं सकता
मैं जिस को अपनी गवाही में ले के आया हूँ
अजब नहीं कि वही आदमी अदू का भी हो
गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
मुझ से बयाँ न कीजे अदू के पयाम को
याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में
वो बैठते भी हैं तो मिरे हम-नशीं से दूर
सहल हो गरचे अदू को मगर उस का मिलना
इतना मैं ख़ूब समझता हूँ कि आसाँ तो नहीं