आम तेरी ये ख़ुश-नसीबी है
वर्ना लंगड़ों पे कौन मरता है
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा
मौसम तुम्हारे साथ का जाने किधर गया
तुम आए और बौर न आया दरख़्त पर
नायाब आम लुत्फ़ हुए रंग रंग के
कोई है ज़र्द कोई हरा कुछ हैं लाल लाल