मिस एडना जैक्सन
स्टोरीलाइन
यह एक कॉलेज की ऐसी प्रिंसिपल की कहानी है, जिसने अपनी छात्रा के बॉय फ्रेंड से ही शादी कर ली थी। जब वो कॉलेज में आई तो छात्राओं ने उसे बिल्कुल मुँह नहीं लगाया था। हालाँकि अपने व्यवहार और ख़ुलूस के चलते वह जल्दी ही छात्राओं के बीच लोकप्रिय हो गई। इसी बीच उसे एक लड़की की मोहब्बत का पता चला, जो एक लेक्चरर से प्यार करती थी। लड़की की पूरी दास्तान सुनने के बाद प्रिंसिपल ने लेक्चरर को अपने घर बुलाया और फिर अपने से आधी उम्र के उस नौजवान के साथ शादी कर ली।
कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का ए’लान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उनकी महबूब प्रिंसिपल उनके कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़ताल भी की, मगर फ़ैसला अटल था... उनका जज़बातीपन थोड़े अ’र्से के बाद ख़त्म हो गया।
नई प्रिंसिपल ने पुरानी प्रिंसिपल की जगह ले ली। तालिबात ने शुरू शुरू में उससे बड़ी नफ़रत-ओ-हिक़ारत का इज़हार किया मगर उसने उनसे कुछ न कहा, हालाँकि उसके इख़्तियार में सब कुछ था। वो उनको कड़ी से कड़ी सज़ा दे सकती थी।
हर वक़्त उसके पतले पतले होंटों पर मुस्कुराहट तैरती रहती... वो सर-ता-पा तबस्सुम थी। कॉलेज में खिली हुई कली की तरह आती और जब वापस जाती तो दिन भर गूना-गूं मस्रूफ़ियतों के बावजूद उस में मुरझाहट के कोई आसार न होते।
उसको ख़फ़गी का इज़हार करना ही नहीं आता था। अगर वो किसी वक़्त उसका इज़हार भी करती तो ऐसा मालूम होता कि वह को आह में तबदील करने की नाकाम कोशिश की गई है।
थोड़े अ’र्से के बाद कॉलेज की तालिबात उसकी गिरवीदा हो गईं। हर वक़्त उससे चिमटी रहतीं। एक दिन, जब कोई जल्सा था, मिस एडना जैक्सन ने तक़रीर की और कहा, “मैं बहुत ख़ुश हूँ कि तुम अब मुझ से मानूस हो गई हो। शुरू शुरू में जैसा कि मैं जानती हूँ तुम मुझसे नफ़रत करती थीं, मेरी प्यारी बच्चियो, मैं यहाँ अपनी मर्ज़ी से नहीं आई थी। मुझे यहाँ मेरे हाकिमों ने भेजा था। तबदीलियां हर मोहकमे में होती हैं, बल्कि ज़िंदगी के हर शो’बे में। असल में तबदीलियों का नाम ही ज़िंदगी है।
तुम आज लड़कियां हो बड़ी चंचल और शरीर... एक दिन आने वाला है जब तुम संजीदा और मतीन माएं बन जाओगी। तुम्हारी गोद में बच्चे खेलते होंगे, तुम से भी कहीं ज़्यादा शरीर और नटखट... मैं तुम्हारी प्रिंसिपल हूँ लेकिन दिल में ये ख़याल कभी न लाना कि मैं कोई ज़ालिम औरत हूँ, मैं तुम सब से मोहब्बत करती हूँ और चाहती हूँ कि मुझसे भी कोई मोहब्बत करे।”
ये तक़रीर सुन कर लड़कियां बहुत मुतास्सिर हुईं और मिस जैक्सन की मोहब्बत में और ज़्यादा गिरफ़्तार हो गईं। सब दिल में नादिम थीं कि उन्होंने ऐसी शरीफ़ और शफ़ीक़ प्रिंसिपल के आने पर क्यों ए’तराज़ किया।
एक दिन बी.ए की एक लड़की ताहिरा जिसने मिस जैक्सन की आमद पर आवाज़े कसे थे और बड़े सख़्त अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए थे, प्रिंसिपल के कमरे में थी।
ताहिरा का सर झुका हुआ था। ख़ौफ़-ओ-हरास उसके चेहरे पर फैला हुआ था। प्रिंसिपल काग़ज़ात पर दस्तख़त कर रही थी। बेहद मुनहमिक थी। थोड़ी देर के बाद जब उसने ताहिरा की सिसकियों की आवाज़ सुनी तो उसको उसकी मौजूदगी का इ’ल्म हुआ। एक दम चौंक कर उसने अपना नन्हा सा फाउंटेन पेन एक तरफ़ रखा और उसकी तरफ़ मुतवज्जे हुई। उसको याद नहीं आ रहा था कि उसने ताहिरा को बुलाया है।
“क्या बात है ताहिरा?”
ताहिरा की आँखों से आँसू रवां थे, “आप... आप ही ने तो मुझे यहाँ तलब फ़रमाया था।”
एक लहज़े के लिए मिस जैक्सन ख़ाली-उद-दिमाग़ रही, लेकिन उसे फ़ौरन याद आ गया कि मुआ’मला क्या है। ताहिरा के नाम एक मर्द का मोहब्बतनामा पकड़ा गया था। ये उसकी एक सहेली नाहीद ने मिस जैक्सन के हवाले कर दिया था।
ये ख़त उसकी दराज़ में महफ़ूज़ था। मिस जैक्सन के मुस्कुराते हुए होंट ताहिरा से मुख़ातिब हुए, “बेटा, ये क्या बात है?”
इसके बाद उसने मेज़ का दराज़ खोल कर ख़त निकाला और ताहिरा से कहा, “लो... ये तुम्हारा ख़त है पढ़ लो और अगर चाहो तो मुझे सारी दास्तान सुनाओ ताकि मैं तुम्हें कोई राय दे सकूं।”
ताहिरा कुछ देर ख़ामोश रही। उसकी समझ में नहीं आता था, क्या कहे।
प्रिंसिपल मिस जैक्सन ने उठ कर उसके कांधे पर शफ़क़त भरा हाथ रखा, “ताहिरा! शर्माओ नहीं, हर लड़की की ज़िंदगी में ऐसे लम्हात आते हैं।”
ताहिरा ने रोना शुरू कर दिया। बूढ़ा चपरासी किसी काम से अंदर दाख़िल हुआ तो मिस जैक्सन ने उससे कहा, “निज़ामुद्दीन! अभी तुम बाहर ठहरो... मैं बुला लूँगी तुम्हें।”
जब वो चला गया तो मिस जैक्सन ने बड़े प्यार से ताहिरा से कहा, “मोहब्बत एक अ’ज़ीम जज़्बा है। मुझे इस पर क्या एतराज़ हो सकता है। लेकिन तुम्हारी उम्र की लड़कियां अक्सर धोका खा जाया करती हैं, मुझे तमाम वाक़ियात बता दो। मैं तुमसे उम्र में बहुत बड़ी हूँ मगर मुझसे आज तक किसी ने मोहब्बत नहीं की, लेकिन मैंने कई उस्तुवार और ना-उस्तुवार मोहब्बतें देखी हैं बेटा, मुझसे घबराओ नहीं... बैठ जाओ।”
ताहिरा अपने दुपट्टे से आँसू पोंछती हुई कुर्सी पर बैठ गई।
प्रिंसिपल अपनी घूमने वाली कुर्सी पर नशिस्त इख़्तियार करते हुए अपनी शागिर्दा से बोलीं, “अब देर न लगाओ, बता दो... मुझे बहुत से ज़रूरी काम करने हैं।”
ताहिरा कुछ देर हिचकिचाती रही। लेकिन इसके बाद उसने अपना दिल खोल के अपनी प्रिंसिपल के सामने रख दिया। उसने बताया कि एक नौजवान लेक्चरार है जिससे वो ट्यूशन लेती है। क़रीब क़रीब एक साल से वो बाक़ाएदा पाँच बजे उसके घर में आता रहा है। उसकी बातें बड़ी दिलफ़रेब हैं। शक्ल-ओ-सूरत के लिहाज़ से भी ख़ूब है। फ़ारसी के अशआ’र का मतलब समझाता है तो एक नक़्शा खींच देता है। उसकी ज़बान में ग़ज़ब की मिठास है।
ताहिरा ने मज़ीद बताया कि उसके दिल में लेक्चरार के लिए जगह पैदा हो गई। आहिस्ता आहिस्ता बेक़रार रहने लगी। उसको हर वक़्त उसकी याद सताती। पाँच बजने वाले होते तो उसको यूँ महसूस होता कि वो मुजस्सम घड़ी बन गई है... उसका रुवां रुवां टिक-टिक करने लगता।
वो उस से ज़बानी तो कुछ नहीं कह सकती थी, इसलिए कि शर्म-ओ-हया इजाज़त नहीं देती थी। उस ने एक रात लेक्चरार के नाम ख़त लिखा... उसने अपनी ज़िंदगी भर में ऐसा ख़त कभी नहीं लिखा था, हालाँ कि वो अपने ख़ानदान में ख़त लिखने के मुआ’मले में काफ़ी मशहूर थी कि हर बात बड़े सलीक़े से लिखती है, लेकिन ये ख़त लिखते हुए उसे बड़ी दिक्क़तें पेश आईं।
अलक़ाब क्या हो, मज़मून कैसा होना चाहिए, फिर ये सवाल भी उसके दरपेश था कि हो सकता है कि वो ये ख़त उसके बाप के हवाले कर दे।
वो एक अ’र्से तक सोचती रही। उसके दिल में कई ख़दशे थे लेकिन आख़िर उसने फ़ैसला कर लिया कि वो ख़त ज़रूर लिखेगी। चुनांचे उसने राइटिंग पैड के कई काग़ज़ ज़ाए करके चंद सुतूर उस लेक्चरार के नाम लिखें,
“आप बड़े अच्छे उस्ताद हैं। मुझे इस तरह पढ़ाते हैं जैसे... जैसे आपको मुझसे ख़ास लगाओ है। वर्ना इतनी मेहनत कौन उस्ताद करता है। मेरा तो ये जी चाहता है कि सारी उम्र आप मेरे उस्ताद और मैं आप की शागिर्दा रहूँ। बस इससे ज़्यादा मैं और कुछ नहीं लिख सकती।”
ये ख़त उसने कई दिन अपने पर्स में रखा। इसके बाद जुरअत से काम लेकर उसने काग़ज़ का ये पुर्ज़ा अपने उस्ताद की जेब में धड़कते हुए दिल के साथ डाल दिया।
दूसरे रोज़ जब वो शाम को ठीक पाँच बजे आया तो उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था। उसने किसी क़िस्म के रद्द-ए-अ’मल का इज़हार न किया। उसे सख़्त मायूसी हुई। दो घंटे के बाद जब वो चला गया तो उसने बड़े चिड़चिड़ेपन से अपनी किताबें उठाईं और अपने कमरे में जाने लगी। एक किताब उसके हाथ से गिर पड़ी। ताहिरा ने बड़ी बे-दिली से उठाई तो उसके औराक़ में से काग़ज़ का एक टुकड़ा झांकने लगा। उसने ये टुकड़ा निकाला, उस पर चंद अलफ़ाज़ मर्क़ूम थे।
ताहिरा के ज़ख़्मी जज़्बात पर मरहम के फाहे लग गए। उसके उस्ताद ने ये लिखा था,
“मुझे तुम्हारी तहरीर मिल गई है... मैं सब कुछ समझ गया हूँ। ज़िंदगी भर तुम्हारा उस्ताद रहने का तो मैं वा’दा नहीं कर सकता लेकिन ख़ादिम ज़रूर रहूँगा। मैं उस्तादी-शागिर्दी से तंग आ गया हूँ। तुम्हारी गु़लामी इससे हज़ार दर्जे बेहतर होगी।”
इस के बाद दोनों में किताबों के औराक़ की ओट में ख़त-ओ-किताबत होती रही लेकिन ताहिरा के वालिदैन को यक-लख़्त शहर छोड़ना पड़ा, इसलिए कि उसके बाप ज़हीर की तबदीली किसी सिलसिले में दूसरे शहर में हो गई।
ताहिरा को हॉस्टल में दाख़िल कर दिया गया, जिसकी सुपरिंटेंडेंट मिस जैक्सन थी। उसका क़याम उसी हॉस्टल में था।
कॉलेज से फ़ारिग़ हो कर आती तो अपने कमरे में अक्सर नॉवेल पढ़ती रहती। अ’जीब अ’जीब क़िस्म के। हॉस्टल की लड़कियाँ उसके पास आतीं और उसके कई नॉवेल चुरा के ले जातीं और मज़े ले लेकर पढ़तीं। फिर वापस वहीं पर रख देतीं जहाँ से उन्होंने उठाए थे। मिस जैक्सन को लड़कियों की इस शरारत का कोई इल्म नहीं था, ताहिरा ने भी कई नॉवेल पढ़े और उसका इश्क़ अपने उस्ताद के इश्क़ से बढ़ता गया। वो हॉस्टल से बाहर निकल नहीं सकती थी इसलिए उसने एक ख़त लिखा और उसे किसी न किसी तरीक़े से अपने उस्ताद तक पहुंचा दिया।
ये ख़त जो उस नौजवान लेक्चरार ने जवाब में लिखा था, ग़लत हाथों में पहुंच गया। या’नी नाहीद के पास जिसको ताहिरा से सिर्फ़ इसलिए बुग़्ज़ था कि वो उसके मुक़ाबले में कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत थी... ये ख़त उसने प्रिंसिपल के हवाले कर दिया।
ताहिरा, जब अपनी सारी दास्तान सुना चुकी जो मिस जैक्सन ने बड़ी दिलचस्पी लेते हुए सुनी तो उस ने कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद ताहिरा से कहा, “अब तुम क्या चाहती हो?”
“मुझे कुछ मालूम नहीं, आप जो फ़ैसला फ़रमाएंगी, मुझे मंज़ूर होगा।”
मिस जैक्सन अपनी कुर्सी पर से उठीं और कहा, “नहीं ताहिरा, मोहब्बत के मुआ’मले में मुझे फ़ैसला देने का इख़्तियार नहीं। ये मज़हब से भी ज़्यादा मुक़द्दस जज़्बा है, तुम ख़ुद बताओ।”
ताहिरा ने शर्म से भरी हुई आँखें जो नम-आलूद थीं, झुका कर सिर्फ़ इतना कहा, “मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ।”
मिस जैक्सन ने ठेट प्रिंसपलाना अंदाज़ में पूछा, “क्या वो भी चाहता है?”
“उस ने अभी तक इस ख़्वाहिश का इज़हार नहीं किया... लेकिन वो...”
“मैं समझती हूँ, वो भी तो तुमसे मोहब्बत करता है... उसे क्या उ’ज़्र हो सकता है, लेकिन क्या तुम्हारे वालिदैन रज़ामंद हो जाऐंगे? ”
“हर्गिज़ नहीं होंगे।”
“क्यों?”
“इसलिए कि वो मेरी मंगनी एक जगह कर चुके हैं।”
“कहाँ?”
“मेरे ख़ाला-ज़ाद भाई के साथ।”
“हम क्रिस्चियनों में तो ऐसा नहीं होता।”
“हमारे हाँ तो अक्सर ऐसा होता है।”
“ख़ैर छोड़ो इस बात को, क्या मैं तुम्हारे इस लेक्चरार को अपने पास बुला कर उससे मुफ़स्सिल बातचीत करूं? ताहिरा ये ज़िंदगी भर का सवाल है, ऐसा न हो कोई ग़लती हो जाये। मैं उम्र में तुमसे बहुत बड़ी हूँ, मैं तुम्हें सही मशवरा दूँगी। एक मर्तबा तुम मुझे उससे मिल लेने दो।”
ताहिरा ने शुक्रिया अदा किया, “आप ज़रूर मिलिए लेकिन... उससे कह दीजिएगा... कि...”
प्रिंसिपल ने बड़ी शफ़क़त से कहा, “रुक क्यों गई हो, जो कुछ तुम उससे कहना चाहती हो, मुझसे कह दो।”
“जी, बस सिर्फ़ इतना कि अगर उसके क़दम मज़बूत न रहे तो मैं ख़ुदकुशी कर लूंगी, औरत ज़िंदगी में... सिर्फ़ एक ही मर्द से मोहब्बत करती है।”
मोहब्बत का लफ़्ज़ सुनते ही प्रिंसिपल मिस एडना जैक्सन के दिल की झुर्रियां और ज़्यादा गहरी हो गईं। उसने ताहिरा के आँसू अपने रूमाल से बड़ी शफ़क़त के साथ पोंछते हुए रुख़सत कर दिया।
इस के बाद उसने घंटी बजा कर चपरासी को अंदर बुलाया। उसने बड़े ज़रूरी काग़ज़ात उसके मेज़ पर रखे। उसने सरसरी नज़र से उनको देखा। एक काग़ज़ पर ताहिरा के उस लेक्चरार के नाम ख़त लिखा कि वो अज़राह-ए-करम उससे किसी वक़्त शाम को बोर्डिंग हाऊस में मिले।
ये ख़त उस ने लिफाफे में डाला, पता लिखा और चपरासी से कहा कि फ़ौरन साइकल पर जाये और ये लिफ़ाफ़ा लेक्चरार साहब को पहुँचा दे।
चपरासी चला गया।
शाम को मिस एडना जैक्सन अपने कमरे में बैठी पर्चे देख रही थी कि नौकर ने इत्तला दी कि एक साहब आपसे मिलने आए हैं।
वो समझ गई कि ये साहब कौन हैं, चुनांचे उसने नौकर से कहा, “उन्हें अंदर ले आओ!”
ताहिरा का उस्ताद ही था जो उसके कमरे में दाख़िल हुआ। मिस जैक्सन ने उसका इस्तक़बाल किया। गर्मियों का मौसम था, जून का महीना, सख़्त तपिश थी। मिस जैक्सन उससे बड़े अख़लाक़ के साथ पेश आई। नौजवान लेक्चरार बहुत मुतास्सिर हुआ।
इधर उधर की बातें होती रहीं। मिस एडना जैक्सन ताहिरा के बारे में बात शुरू करने ही वाली थी कि उस पर हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया। उसको ये मर्ज़ बहुत देर से लाहक़ था। लेक्चरार बहुत फ़िक्रमंद हुआ। घर में कोई नौकर नहीं था, इसलिए कि वो छुट्टी कर के कहीं बाहर सो रहे थे। उसने ख़ुद ही जो उसकी समझ में आया, किया।
जब कॉलेज गर्मियों की छुट्टियों के बाद खुला तो लड़कियों को ये सुन कर बड़ी हैरत हुई कि उनकी प्रिंसिपल मिस एडना जैक्सन से उस लेक्चरार की शादी हो गई है, जिसको ताहिरा से मोहब्बत थी, ये दिलचस्प बात है कि लेक्चरार लतीफ़ की उम्र पच्चीस बरस के क़रीब होगी और मिस एडना जैक्सन की लगभग पच्चास बरस।
- पुस्तक : پھند نے
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