ईदगाह
ईद जैसे महत्वपूर्ण त्योहार को आधार बनाकर ग्रामीण मुस्लिम जीवन का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया गया है। हामिद का चरित्र हमें बताता है कि अभाव उम्र से पहले बच्चों में कैसे बड़ों जैसी समझदारी पैदा कर देता है। मेले में हामिद अपनी हर इच्छा पर संयम रखने में विजयी होता है। और अपनी दादी अमीना के लिए एक चिमटा ख़रीद लेता है ताकि रोटी पकाते वक़्त उसके हाथ न जलें।
प्रेमचंद
आनंदी
‘समाज में जिस चीज़ की माँग होती है वही बिकती है।’ बल्दिया के पाकबाज़ लोग शहर को बुराइयों और बदनामियों से बचाने के लिए वहाँ के ज़नाना बाज़ार को शहर से हटाने की मुहिम चलाते हैं। वह इस मुहिम में कामयाब भी होते हैं और उस बाज़ार को शहर से छ: मील दूर एक खंडहर में आबाद करने का फैसला करते है। अब बाज़ारी औरतों के वहाँ घर बनवाने और आबाद होने तक उस खंडहर में ऐसी चहल-पहल रहती है कि वह अच्छा-ख़ासा गाँव बन जाता है। कुछ साल बाद वह गाँव क़स्बा और क़स्बे से शहर में तब्दील हो जाता है। यही शहर आगे जाकर आनंदी के नाम से जाना जाता है।
ग़ुलाम अब्बास
एक ख़त
यह कहानी लेखक के व्यक्तिगत जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाओं को बयान करती है। एक दोस्त के ख़त के जवाब में लिखे गए उस पत्र में लेखक ने अपने व्यक्तिगत जीवन के कई राज़ों से पर्दा उठाया है। साथ ही अपनी उस नाकाम मोहब्बत का भी ज़िक्र किया है जो उसे कश्मीर प्रवास के दौरान वज़ीर नाम की लड़की से हो गई थी।
सआदत हसन मंटो
लालटेन
इस कहानी में लेखक ने अपने कश्मीर दौरे के कुछ यादगार लम्हों का बयान किया है। हालाँकि लेखक को यक़ीन है कि वह एक अच्छा क़िस्सा-गो नहीं है और न ही अपनी यादों को ठीक से बयान कर सकता है। फिर भी बटोत (कश्मीर) में बिताए अपने उन क्षणों को वह बयान किए बिना नहीं रह पाता, जिनमें उसकी वज़ीर नाम की लड़की से मुलाक़ात हुई थी। उस मुलाक़ात के कारण वह अपने दोस्तों में बहुत बदनाम भी हुआ था। वज़ीर ऐसी लड़की थी कि जब लेखक अपने दोस्त के साथ रात को टहलने निकलता था तो सड़क के किनारे उन्हें रास्ता दिखाने के लिए लालटेन लेकर खड़ी हो जाती थी।
सआदत हसन मंटो
आपा
कहानी एक ऐसी लड़की की दास्तान बयान करता है जो जले हुए उपले की तरह है। बाहर से राख का ढ़ेर मगर अंदर चिंगारियाँ हैं। घर के कामों में बंधी उसकी ज़िंदगी ख़ामोशी से गुज़र रही थी कि उसकी फुप्पो का बेटा तसद्दुक़ उनके यहाँ रहने चला आया। वह उसे पसंद करने लगी और उसकी फ़रमाइशों के मुताबिक़ ख़ुद को ढालती चली गई। मगर जब जीवन साथी चुनने की बारी आई तो तसद्दुक़ ने उसे छोड़कर सज्जो बाजी से शादी कर ली।
मुमताज़ मुफ़्ती
इश्क़िया कहानी
यह इश्क़़ में गिरफ़्तार हो जाने की ख़्वाहिश रखने वाले एक ऐसे नौजवान जमील की कहानी है जो चाहता है कि वह किसी लड़की के इश्क़ में बुरी तरह गिरफ़्तार हो जाए और फिर उससे शादी कर ले। इसके लिए वह बहुत सी लड़कियों का चयन करता है। उनसे मिलने, उन्हें ख़त लिखने की योजनाएं बनाता है, लेकिन अपनी किसी भी योजना पर वह अमल नहीं कर पाता। आख़िर में उसकी शादी तय हो जाती है, और विदाई की तारीख़ भी निर्धारित हो जाती है। उसी रात उसकी ख़ाला-ज़ाद बहन आत्महत्या कर लेती है, जो जमील के इश्क़़ में बुरी तरह गिरफ़्तार होती है।
सआदत हसन मंटो
क़र्ज़ की पीते थे...
"मिर्ज़ा ग़ालिब की शराब नोशी और क़र्ज़ अदा न करने के बाइस मामला अदालत में पहुँच जाता है। वहाँ मुफ़्ती सद्र-उद-दीन आज़ुर्दा अदालत की कुर्सी पर बिराजमान होते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़लती साबित हो जाने के बाद मुफ़्ती सद्र-उद-दीन जुर्माना की सज़ा देते हैं और अपनी जेब-ए-ख़ास से जुर्माना अदा भी कर देते हैं।"
सआदत हसन मंटो
चुग़द
यौन इच्छा एक पशुप्रवृत्ति है और इसके लिए किसी स्कीम और योजना की ज़रूरत नहीं होती। इसी मूल बिंदु पर बुनी गई इस कहानी में एक ऐसे नौजवान का वाक़िया बयान किया गया है जो एक पहाड़ी लड़की को आकर्षित करने के लिए हफ़्तों योजना बनाता रहता है फिर भी कामयाब नहीं होता। इसके विपरीत एक लारी ड्राईवर कुछ मिनटों में ही उस लड़की को राम करके अपनी इच्छा पूरी करने में सफल हो जाता है।
सआदत हसन मंटो
सेराज
यह एक ऐसी नौजवान वेश्या की कहानी है, जो किसी भी ग्राहक को ख़ुद को हाथ नहीं लगाने देती। हालाँकि जब उसका दलाल उसका सौदा किसी से करता है, तो वह ख़ुशी-ख़ुशी उसके साथ चली जाती है, लेकिन जैसे ही ग्राहक उसे कहीं हाथ लगाता है कि अचानक वह उससे झगड़ने लगती है। दलाल उसकी इस हरकत से बहुत परेशान रहता है, पर वह उसे ख़ुद से अलग भी नहीं कर पाता है, क्योंकि वह उससे मोहब्बत करने लगा है। एक दिन वह दलाल को लेकर लाहौर चली जाती है। वहाँ वह उस नौजवान से मिलती है, जो उसे घर से भगाकर एक सराय में अकेला छोड़ गया था।
सआदत हसन मंटो
झूटी कहानी
इस कहानी में एक काल्पनिक बदमाशों की अंजुमन के ज़रिये सियासतदानों पर गहरा तंज़ किया गया है। बदमाशों की अंजुमन क़ाएम होती है और बदमाश अख़बारों के ज़रिये अपने अधिकारों की माँग करते हैं तो उनकी रोक-थाम के लिए एक बड़े हाल में जलसा किया जाता है जिसमें सियासतदाँ और शहर के बड़े लोग बदमाशों की अंजुमन के ख़िलाफ़ तक़रीरें करते हैं। आख़िर में पिछली पंक्ति से अंजुमन का एक नुमाइंदा खड़ा होता है और ग़ालिब के अश्आर की मदद से अपनी दिलचस्प तक़रीर से सियासतदानों पर तंज़ करता है और उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाता है।
सआदत हसन मंटो
ख़ोरेश्ट
यह कहानी समाज के एक नाज़ुक पहलू को सामने लाता है। सरदार ज़ोरावर सिंह, सावक कापड़िया का लंगोटिया यार है। अपना अक्सर वक़्त उसके घर पर गुज़ारता है। दोस्त होने की वजह से उसकी बीवी ख़ुर्शीद से भी बे-तकल्लुफ़ी है। सरदार हर वक़्त ख़ुरशीद की आवाज़ की तारीफ़ करता है और उसके लिए मुनासिब स्टूडियो की तलाश में रहता है। अपने उन उपायों से वो ख़ुर्शीद को राम कर के उससे शादी कर लेता है।
सआदत हसन मंटो
सुर्मा
फ़हमीदा को सुर्मा लगाने का बेहद शौक़ था। शादी के बाद शौहर के टोकने पर उसने सुर्मा लगाना छोड़ दिया। फिर उसने नवजात बच्चे के सुर्मा लगाना शुरू किया लेकिन वो डबल निमोनिया से मर गया। एक दिन जब फ़हमीदा के शौहर ने उसे जगाने की कोशिश की तो वो मुर्दा पड़ी थी और उसके पहलू में एक गुड़िया थी जिसकी आँखें सुर्मे से भरी हुई थीं।
सआदत हसन मंटो
बलवंत सिंह मजेठिया
यह एक रूमानी कहानी है। शाह साहब काबुल में एक बड़े व्यापारी थे, वो एक लड़की पर मुग्ध हो गए। अपने दोस्त बलवंत सिंह मजीठिया के मशवरे से मंत्र पढ़े हुए फूल सूँघा कर उसे राम किया लेकिन दुल्हन के कमरे में दाख़िल होते ही दुल्हन मर गई और उसके हाथ में विभिन्न रंग के वही सात फूल थे जिन्हें शाह साहब ने मंत्र पढ़ कर सूँघाया था।
सआदत हसन मंटो
मिस एडना जैक्सन
यह एक कॉलेज की ऐसी प्रिंसिपल की कहानी है, जिसने अपनी छात्रा के बॉय फ्रेंड से ही शादी कर ली थी। जब वो कॉलेज में आई तो छात्राओं ने उसे बिल्कुल मुँह नहीं लगाया था। हालाँकि अपने व्यवहार और ख़ुलूस के चलते वह जल्दी ही छात्राओं के बीच लोकप्रिय हो गई। इसी बीच उसे एक लड़की की मोहब्बत का पता चला, जो एक लेक्चरर से प्यार करती थी। लड़की की पूरी दास्तान सुनने के बाद प्रिंसिपल ने लेक्चरर को अपने घर बुलाया और फिर अपने से आधी उम्र के उस नौजवान के साथ शादी कर ली।
सआदत हसन मंटो
बारिदा शिमाली
प्रतीकों के माध्यम से कही गई यह कहानी दो लड़कियों के गिर्द घूमती हैं। वे दोनों पक्की सहेलियाँ थीं। उन्होंने एक साथ ही अपने जीवन साथी भी चुने थे। दोनों की ज़िंदगी हँसी-ख़ुशी गुज़र रही थी कि अचानक उन्हें एहसास होने लगता है कि उनके जीवन साथी उनके लिए सही नहीं हैं। फिर एक इत्तिफ़ाक़़ के चलते उनके जीवन साथी एक-दूसरे से बदल जाते हैं। इस बदलाव के बाद उन्हें महसूस होता है कि अब वे सही जीवन साथी के साथ हैं।
सआदत हसन मंटो
सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था
एक ऐसी शख्स की कहानी जो मोहब्बत तो करता है मगर उसका इज़हार करने की कभी हिम्मत नहीं कर पाता। पड़ोसी होने के बावजूद वह परिवार में एक फ़र्द की तरह रह रहा था और जहाँ-जहाँ वालिद साहब की पोस्टिंग होती रही मिलने आता रहा। ख़ानदान वाले सोचते रहे कि वह उनकी छोटी बेटी से मोहब्बत करता है। मगर वे तो उनकी बड़ी बेटी से मोहब्बत करता है। उसकी ख़्वाहिश थी कि काश, वह उसे एक बार ‘डार्लिंग’ कह सके।
क़ुर्रतुलऐन हैदर
हाफ़िज़ हुसैन दीन
यह तंत्र-मंत्र के सहारे लोगों को ठगने वाले एक ढोंगी पीर की कहानी है। हाफ़िज़ हुसैन दीन आँखों से अंधा था और ज़फ़र शाह के यहाँ आया हुआ था। ज़फ़र से उसका सम्बंध एक जानने वाले के ज़रिए हुआ था। ज़फ़र पीर-औलिया पर बहुत यक़ीन रखता था। इसी वजह से हुसैन दीन ने उसे आर्थिक रूप से ख़ूब लूटा और आख़िर में उसकी मंगेतर को ही लेकर भाग गया।
सआदत हसन मंटो
मिस्री की डली
मुंबई में लीक से बँधी बेजान और बेरंग ज़िंदगी गुज़ारते शख़्स की कहानी। एक रोज़़ लेटे-लेटे उसे अपनी बीती ज़िंदगी की कुछ घटनाओं की याद आती है। इन्हीं यादों में बेगू भी चली आती है। बेगू वह लड़की है जिससे वह अपने कश्मीर दौरे पर मिला था। वह उस से मोहब्बत करने लगा था। उन दिनों को याद करते हुए उसे इस बात का शिद्दत से एहसास होता है कि बेगू के साथ बिताए दिन उसकी ज़िंदगी के सब से हसीन दिन थे।
सआदत हसन मंटो
मेरा हमसफ़र
अलीगढ़ से अमृतसर लौटते एक छात्र की कहानी है। वह ट्रेन में सवार हुआ तो उसे अलविदा कहने आए उसके साथी ने उससे कोई ऐसी बात कही कि उसने उसे पागल कहकर झटक दिया। ट्रेन में उसके साथ सफ़र कर रहे नौजवान ने सोचा कि वह उसे पागल कह रहा है। बात करने पर पता चला कि वह नौजवान अपने घर से सिर्फ़ इसलिए निकल आया है क्योंकि उसका यहूदी बाप उसे पागल कहता है। इसी कारण उसकी बीवी भी उसे छोड़कर अपने मायके चली जाती है।
सआदत हसन मंटो
ख़ुशबूदार तेल
यह मालिक और घर में काम करने वाली नौकरानी के बीच चल रहे अवैध संबंधों पर आधारित कहानी है। दोनों मियाँ बीवी में किसी बात को लेकर कहा-सुनी हो जाती है। इसी कहा-सुनी में उसकी बीवी बताती है कि उसने नौकरानी को निकाल दिया है। जब वह इसका कारण पूछता है तो वह बताती है कि उसके सिर में से भी उसी तेल की ख़ुश्बू आती थी जो उसके मियाँ के सिर में से आ रही है।
सआदत हसन मंटो
हज्ज-ए-अकबर
कहानी सग़ीर नामक एक ऐसे शख़्स की है, जिसे एक शादी में इम्तियाज़ नाम की लड़की से मोहब्बत हो जाती है। उसकी मोहब्बत में वह कुछ इस क़दर गिरफ़्तार होता है कि वह उससे शादी कर लेता है। मगर शादी के बाद भी उनके बीच मर्द-औरत वाले संबंध नहीं पनप पाते, क्योंकि सग़ीर अपनी चाहत के कारण इम्तियाज़ को एक बहुत पवित्र वस्तु समझने लगता है। एक रोज़़ सग़ीर के घर उसका बड़ा भाई अकबर मिलने आता है। उसके वापस जाने से पहले ही सग़ीर इम्तियाज़ की ज़िंदगी से हमेशा के लिए निकल जाता है।
सआदत हसन मंटो
शाह दूले का चूहा
मज़हब के नाम पर गोरख धंधा करने वालों की कहानी है। शाह दूले के मज़ार के बारे में यह अक़ीदा राइज कर दिया गया था कि यहाँ मन्नत मानने के बाद अगर बच्चा होता है तो पहला बच्चा शाह दूले का चूहा है और उस बच्चे को मज़ार पर छोड़ना ज़रूरी है। सलीमा को अपना पहला बच्चा मुजीब इसी अक़ीदे से मज़ार पर छोड़ना पड़ा, लेकिन वह उसका ग़म अपने सीने से लगाये रही। एक मुद्दत के बाद जब मुजीब उसके दरवाज़े पर शाह दूल्हे का चूहा बन कर आता है तो सलीमा उसे तुरंत पहचान लेती है और तमाशा दिखाने वाले से पाँच सौ के बदले उसे ले लेती है, लेकिन जब वह पैसे देकर वापस अंदर आती है तो मुजीब ग़ायब हो चुका होता है।
सआदत हसन मंटो
छोकरी की लूट
कहानी में शादी जैसी पारंपरिक संस्कार को एक दूसरे ही रूप में पेश किया गया है। बेटियों के जवान होने पर माँएं अपनी छोकरियों की लूट मचाती हैं, जिससे उनका रिश्ता पक्का हो जाता है। प्रसादी की बहन की जब लूट मची तो उसे बड़ा गु़स्सा आया, क्योंकि रतना खू़ब रोई थी। बाद में उसने देखा कि रतना अपने काले-कलूटे पति के साथ खु़श है तो उसे एहसास होता है कि रतना की शादी ज़बरदस्ती नहीं हुई थी बल्कि वह तो खु़द से अपना लूट मचवाना चाहती थी।
राजिंदर सिंह बेदी
मिसेस डिकोस्टा
यह एक ईसाई औरत की कहानी है, जिसे अपनी पड़ोसन के गर्भ में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी है। गर्भवती पड़ोसन के दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन बच्चा है कि पैदा होने का नाम ही नहीं ले रहा है। मिसेज़ डिकोस्टा हर रोज़़ उससे बच्चे की पैदाइश के बारे में पूछती है। साथ ही उसे मोहल्ले भर की ख़बरें भी बताती जाती है। उन दिनों देश में शराब-बंदी क़ानून की माँग बढ़ती जा रही थी, जिसके कारण मिसेज़ डिकोस्टा बहुत परेशान थी। फिर भी वह अपनी गर्भवती पड़ोसन का बहुत ख़याल करती है। एक दिन उसने पड़ोसन को घर बुलाया और उसका पेट देखकर बताया कि बच्चा कितने दिनों में और क्या (लड़का या लड़की) पैदा होगा।
सआदत हसन मंटो
ढारस
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है जिसे शराब पीने के बाद औरत की ज़रूरत होती है। उस दिन वह अपने एक हिंदू दोस्त की बारात में गया हुआ था। वहाँ भी पीने-पिलाने का दौर चला। किसी ने भी उसकी इस आदत को अहमियत नहीं दी। वह पीने के बाद छत पर चला गया। वहाँ वह अंधेरे में लेटी एक अनजान लड़की के साथ जाकर सो गया। बाद में पता चला कि वह दुल्हन की विधवा बहन थी। उसकी इस हरकत पर वह लगातार रो रही थी। लोगों के समझाने-बुझाने पर वह मान जाती है और किसी से कुछ नहीं कहती।
सआदत हसन मंटो
घोगा
अफ़साना अस्पताल में भर्ती ऐसे मरीज़़ की दास्तान बयान करता है जो वहाँ से दवाइयाँ चोरी कर के अपनी बहन को दिया करता है। उसकी इन हरकतों का अस्पताल की सभी नर्सों को पता है, फिर भी वे किसी को कुछ नहीं बताती हैं। इन्हीं में से एक नर्स मिस जैकब भी है, जिसे कोई घास नहीं डालता है। मगर जिस दिन वह मरीज़़ अस्पताल से रुख़स्त हुआ, उसी दिन मिस जैकब भी ग़ायब हो गई। पर दो दिन बाद ही वह लौट आई। वह पहले की तरह से चुप-चुप थी। बस उसके कानों की सोने की बालियाँ ग़ायब हो गईं थीं।
सआदत हसन मंटो
शलजम
इस कहानी में रात को देर से घर आने वाले शौहरों की बीवी के साथ होने वाली बहस को दिखाया गया है। वह रात में तीन बजे आया था। जब उसने खाना माँगा तो बीवी ने देने से इंकार कर दिया। इस पर उन दोनों के बीच बहस होने लगी। दोनों अपनी-अपनी दलीलें देने लगे। कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ। बहस हो ही रही थी कि अंदर से नौकर आया और कहने लगा कि खाना तैयार है। खाने के बारे में सुनते ही मियाँ-बीवी के बीच सुलह हो गई।
सआदत हसन मंटो
मुरासिला
इस कहानी में एक परम्परावादी घराने की परम्पराओं, आचार-व्यवहार और रहन सहन में होने वाली तब्दीलियों का ज़िक्र है। कहानी के मुख्य पात्र के घर से उस घराने के गहरे मरासिम हुआ करते थे लेकिन वक़्त और मसरुफ़ियत की धूल उस ताल्लुक़ पर जम गई। एक लम्बे समय के बाद जब प्रथम वाचक उस घर में किसी काम से जाता है तो उनकी जीवन शैली में होने वाली तब्दीलियों पर हैरान होता है।
नैयर मसूद
मीठा माशूक़
यह उस वक़्त की कहानी है जब रेल ईजाद नहीं हुई थी और लोग पैदल, ऊँट या फिर घोड़ों पर सफ़र किया करते थे। लखनऊ शहर में एक शख़्स पर मुक़दमा चल रहा था और वह शख़्स शहर से काफ़ी दूर रहता था। मुक़दमे की तारीख़ पर हाज़िर होने के लिए वह अपने क़ाफ़िले के साथ शहर के लिए रवाना हो गया। साथ में नज़राने के तौर पर मिठाइयों का एक टोकरा भी था। पूरे रास्ते उस 'मीठे माशूक़' की वजह से उन्हें कुछ ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा कि वहआराम से सो तक नहीं सके।
चौधरी मोहम्मद अली रुदौलवी
काली तित्री
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो अपने साथी डाकुओं के साथ मिलकर अपनी ही बहन के घर में डाका डालता है। जब वे गहने चुराकर जाने लगते हैं तो ग़लती से उनका एक साथी गोली चला देता है। इससे पूरा गाँव जाग जाता है। गाँव वालों से बाक़ी डाकू तो बचकर निकल जाते हैं लेकिन काली तितरी फँस जाता है। गाँव के कई लोग उसे पहचान लेते हैं और उनमें से एक आगे बढ़कर एक ही वार में उसकी पेट की अंतड़िया बाहर कर देता है।
बलवंत सिंह
ख़ाँ साहब
कहानी एक ऐसे शख़्स के गिर्द घूमती है, जो बहुत दीनदार है मगर इतना कंजूस है कि उसकी बीवी-बेटी बहुत मुफ़्लिसी में गुज़ारा करती हैं। उसकी बीवी बेटी को अच्छी परवरिश के लिए एक औरत के पास छोड़ देती है, तो बदले में वह उस औरत से पैसे भी माँगता है। औरत पैसे तो नहीं देती, हाँ एक पढ़े-लिखे लड़के से उसका रिश्ता तय कर देती है। मगर कम मेहर और नकद न मिलने की वजह से वह धोखे से अपनी बेटी की शादी एक अमीर और अधेड़ उम्र के शख़्स से करा देता है।
मोहम्मद मुजीब
दूर का निशाना
यह एक ऐसे मुंशी की दास्तान है, जो अपनी हर ख़्वाहिशात को बड़े शौक़ से पूरा करने का क़ायल है। उसका कामयाब कारोबार है और चौक जो कि बाज़ार-ए-हुस्न है, तक भी उसका आना जाना लगा रहता है। ऐसे में उसकी मुलाक़ात एक वेश्या से हो जाती है। एक रोज़ वह वेश्या के यहाँ बैठा हुआ था कि एक पुलिस वाले ने उसके एक आदमी के साथ मारपीट करली। वेश्या चाहती है कि मुंशी बाहर जाए और उस पुलिस वाले को सबक़ सिखाए। मगर मुंशी जी का ठंडापन देखकर वह उनसे खफ़ा हो जाती है।
चौधरी मोहम्मद अली रुदौलवी
रुमूज़-ए-ख़ामोशी
मैं चार बजे की गाड़ी से घर वापिस आ रहा था। दस बजे की गाड़ी से एक जगह गया था और चूँकि उसी रोज़ वापिस आना था लिहाज़ा मेरे पास अस्बाब वग़ैरा कुछ ना था। सिर्फ एक स्टेशन रह गया था। गाड़ी रुकी तो मैंने देखा कि एक साहिब सैकिण्ड क्लास के डिब्बे से उतरे। उनका क़द्द-ए-बला
मिर्ज़ा अज़ीम बेग़ चुग़ताई
उस्ताद शम्मो ख़ाँ
यह कहानी उस्ताद शम्मो खाँ की है। एक ज़माने में वह पहलवान था। पहलवानी में उसने काफ़ी नाम कमाया था और अब अच्छी ख़ासी ज़िंदगी गुजार रहा था कि अब ज़िंदगी के बाक़ी दिन कबूतर-बाज़ी का शौक़ पूरा करके गुज़र रहा है। पास ही रहने वाले शेख जी भी कबूतर-बाज़ी का शौक़ रखते थे। अब कबूतर-बाज़ी के इस शौक़ में उन दोनों के बीच किस-किस तरह के दांव-पेंच होते हैं और कौन बाज़ी मारता है, यह सब जानने के लिए यह कहानी पढ़ें।
अहमद अली
एहतियात-ए-इश्क़
कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिसने अपने प्रेमी को एक साल पहले देखा था और उसकी आँखों में उसकी वही छवि बसी हुई थी। अब जबकि वह उससे मिलने आ रहा था तो वह उसके इस्तिक़बाल में कोई कमी नहीं रहने देना चाहती थी। उसने सुना था कि उसका महबूब फौज में भर्ती हो गया है, इससे उसमें कुछ बांकपन आ गया होगा। मगर जब उसने उसे एयरपोर्ट पर देखा तो वह उसे देखकर इस क़दर हैरान हुई कि एक बार तो उसने उसे पहचानने से ही इंकार दिया।
हिजाब इम्तियाज़ अली
चेचक के दाग़
"जय राम बी.ए पास रेलवे में इकसठ रुपये का मुलाज़िम है। जय राम के चेहरे पर चेचक के दाग़ हैं, उसकी शादी सुखिया से हुई है जो बहुत ख़ूबसूरत है। सुखिया को पहले पहल तो जय राम से नफ़रत होती है लेकिन फिर उसकी शराफ़त, तालीम और नौकरी-पेशा होने के ख़याल से उसके चेचक के दाग़ को एक दम फ़रामोश कर देती है और शिद्दत से उसके आने का इंतज़ार करती रहती है। जय राम कई बार उसके पास से आकर गुज़र जाता है, सुखिया सोचती है कि शायद वो अपने चेचक के दाग़ों से शर्मिंदा है और शर्मीलेपन की वजह से नहीं आ रहा है। रात में सुखिया को उसकी ननद बताती है कि जय राम ने सुखिया की नाक लंबी होने पर एतराज़ किया है और उसके पास आने से इनकार कर दिया है।"
राजिंदर सिंह बेदी
बनारस का ठग
कहानी एक ऐसे शख़्स की है जो बनारस घूमते आता है तो उसे हर जगह वाराणसी लिखा दिखाई देता है। वह शहर में घूमता है और देखता है कि एक तरफ कुछ लोग हैं जो बहुत अमीर और दूसरे लोगों के पास इतना भी नहीं कि वे अपना तन ढक सकें। वह उन लोगों से कपड़े लेकर गरीबों को दे देता है। वह सारनाथ जाता है और वहाँ गौतम बुद्ध की सोने की मूर्ति देखता है। जिससे वह बहुत क्रोधित हो जाता है और मूर्ति को तोड़ देता है। वह शहर में इसी तरह और कई काम करता है। आख़िर में उसे पुलिस पकड़ लेती है और पागलख़ाने वालों को सौंपते वक़्त जब उसका नाम पूछा जाता है तो वह अपना नाम बताता है, कबीर।
ख़्वाजा अहमद अब्बास
खुल बंधना
पूर्णमासी को एक मंदिर में लगने वाले मेले के गिर्द घूमती यह कहानी स्त्री विमर्श पर बात करती है। मंदिर में लगने वाला मेला ख़ास तौर से औरतों के लिए ही है, जहाँ वह परिवार में चल रहे झगड़ों, पतियों, सास और ननदों की तरफ़ से लगाए बंधनों के खुलने की मन्नतें माँगती हैं। साथ ही वे परिवार और समाज में औरत की स्थिति पर भी बातचीत करती जाती हैं।