ज़ुहूर नज़र
ग़ज़ल 15
नज़्म 7
अशआर 12
सुनते हैं चमकता है वो चाँद अब भी सर-ए-बाम
हसरत है कि बस एक नज़र देख लें हम भी
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वो भी शायद रो पड़े वीरान काग़ज़ देख कर
मैं ने उस को आख़िरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं
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पास हमारे आकर तुम बेगाना से क्यूँ हो
चाहो तो हम फिर कुछ दूरी पर छोड़ आएँ तुम्हें
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वो जिसे सारे ज़माने ने कहा मेरा रक़ीब
मैं ने उस को हम-सफ़र जाना कि तू उस की भी थी
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चित्र शायरी 2
वीडियो 3
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