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ज़मीर अतरौलवी

1959 | अलीगढ़, भारत

ज़मीर अतरौलवी

ग़ज़ल 6

अशआर 6

हज़ारों ज़ुल्म हों मज़लूम पर तो चुप रहे दुनिया

अगर मज़लूम कुछ बोले तो दहशत-गर्द कहती है

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ख़ून के जो रिश्ते थे बन गए अज़ाब-ए-जाँ

हम को दल के रिश्तों से इस्तिफ़ादा पहुँचा है

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ग़रीबी नाम है जिस का अज़ाब-ए-जान होती है

मगर दौलत की कसरत मोहलिक-ए-ईमान होती है

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इज़्न सूरज की किरन को नहीं जाने का जहाँ

मेरी तख़्ईल का शाहीन वहाँ भी पहुँचा

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कोई भूका जो फ़र्त-ए-ज़ोफ़ से कुछ लड़खड़ा जाए

तो दुनिया तंज़ कसती है उसे मद-मस्त कहती है

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