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ज़फ़र अज्मी

ग़ज़ल 8

अशआर 10

ये अलग बात कि वो दिल से किसी और का था

बात तो उस ने हमारी भी ब-ज़ाहिर रक्खी

बजा है ज़िंदगी से हम बहुत रहे नाराज़

मगर बताओ ख़फ़ा तुम से भी कभू हुए हैं

किसी के रास्ते की ख़ाक में पड़े हैं 'ज़फ़र'

मता-ए-उम्र यही आजिज़ी निकलती है

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ना-ख़ुदा छोड़ गए बीच भँवर में तो 'ज़फ़र'

एक तिनके के सहारे ने कहा बिस्मिल्लाह

सब बड़े ज़ोम से आए थे नए सूरत-गर

सब के दामन से वही ख़्वाब पुराने निकले

"फ़ैसलाबाद" के और शायर

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