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वामिक़ जौनपुरी

1909 - 1998 | जौनपुर, भारत

प्रमुख प्रगतिशील शायर, अपनी नज़्म ‘भूखा बंगाल’ के लिए मशहूर

प्रमुख प्रगतिशील शायर, अपनी नज़्म ‘भूखा बंगाल’ के लिए मशहूर

वामिक़ जौनपुरी

ग़ज़ल 35

नज़्म 13

अशआर 39

मोहब्बत की सज़ा तर्क-ए-मोहब्बत

मोहब्बत का यही इनआम भी है

इक हल्क़ा-ए-अहबाब है तन्हाई भी उस की

इक हम हैं कि हर बज़्म में तन्हा नज़र आए

तेरी क़िस्मत ही में ज़ाहिद मय नहीं

शुक्र तो मजबूरियों का नाम है

इस दौर की तख़्लीक़ भी क्या शीशागरी है

हर आईने में आदमी उल्टा नज़र आए

सरकशी ख़ुद-कशी पे ख़त्म हुई

एक रस्सी थी जल गई शायद

पुस्तकें 12

ऑडियो 32

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है

क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए

जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ

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