वली मोहम्मद वली
ग़ज़ल 40
अशआर 26
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे
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चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त
जा तमाशा देख उस रुख़्सार का
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याद करना हर घड़ी तुझ यार का
है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का
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मुफ़लिसी सब बहार खोती है
मर्द का ए'तिबार खोती है
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दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
जब ख़याल-ए-सनम चराग़ हुआ
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