वजीह सानी
ग़ज़ल 10
अशआर 2
'सानी' फ़क़त तुम्हारा लिखा जिन ख़ुतूत पर
वो तो कभी के ज़ाएद-उल-मीआ'द हो गए
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चित्र शायरी 1
अच्छा हुआ कि इश्क़ में बर्बाद हो गए मजबूरियों की क़ैद से आज़ाद हो गए कब तक फ़रेब खाते रहें क़ैद में रहें ये सोच कर असीर से सय्याद हो गए इस कैफ़ियत का नाम है क्या सोचते हैं हम और दोस्तों की ज़िद है कि फ़रहाद हो गए मिलने का मन नहीं तो बहाना नया तराश अब तो मुकालमे भी तिरे याद हो गए बेज़ार बद-मिज़ाज अना-दार बद-लिहाज़ ऐसे नहीं थे जैसे तेरे बा'द हो गए 'सानी' फ़क़त तुम्हारा लिखा जिन ख़ुतूत पर वो तो कभी के ज़ाएद-उल-मीआ'द हो गए