वहीद अख़्तर
ग़ज़ल 26
नज़्म 9
अशआर 25
माँगने वालों को क्या इज़्ज़त ओ रुस्वाई से
देने वालों की अमीरी का भरम खुलता है
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हज़ारों साल सफ़र कर के फिर वहीं पहुँचे
बहुत ज़माना हुआ था हमें ज़मीं से चले
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जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी
न सुनना चाहो तो दिल की सदा सुनाई न दे
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तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए
मुंतज़िर दिल की मुनाजात मुकम्मल हो जाए
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कल जहाँ ज़ुल्म ने काटी थीं सरों की फ़सलें
नम हुई है तो उसी ख़ाक से लश्कर निकला
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