वहीद अख़्तर
ग़ज़ल 26
नज़्म 9
अशआर 25
अब्र आँखों से उठे हैं तिरा दामन मिल जाए
हुक्म हो तेरा तो बरसात मुकम्मल हो जाए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए
मुंतज़िर दिल की मुनाजात मुकम्मल हो जाए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
बिछड़े हुए ख़्वाब आ के पकड़ लेते हैं दामन
हर रास्ता परछाइयों ने रोक लिया है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हर एक लम्हा किया क़र्ज़ ज़िंदगी का अदा
कुछ अपना हक़ भी था हम पर वही अदा न हुआ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हर्फ़-ए-इंकार है क्यूँ नार-ए-जहन्नम का हलीफ़
सिर्फ़ इक़रार पे क्यूँ बाब-ए-इरम खुलता है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए