ताहिर अज़ीम
ग़ज़ल 21
नज़्म 1
अशआर 14
जो तिरे इंतिज़ार में गुज़रे
बस वही इंतिज़ार के दिन थे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूँ
ज़ेहन में पर गाँव का नक़्शा रखा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मुझ को भी हक़ है ज़िंदगानी का
मैं भी किरदार हूँ कहानी का
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ये जो माज़ी की बात करते हैं
सोचते होंगे हाल से आगे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मैं तिरे हिज्र में जो ज़िंदा हूँ
सोचता हूँ विसाल से आगे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए