aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1824 - 1892
मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार किसी का
गुल पर है नज़र ध्यान में रुख़्सार किसी का
हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी
सब ख़्वाब में थे रात को बेदार हमीं थे
वो खड़े कहते हैं मेरी लाश पर
हम तो सुनते थे कि नींद आती नहीं
जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप
उसी पहलू में दर्द रहता है
कभी तो शहीदों की क़ब्रों पे आओ
ये सब घर तुम्हारे बसाए हुए हैं
Afkar-e-Tashshuq
Volume-002
1953
Volume-001
1950
Baraheen-e-Gham
1927
Volume-003
1895
1891
Baraheen-e-Ghazal
दीवान-ए-हज़रत तअश्शुक़
Deewan-e-Hazrat Tashshuq Alaihir Rahmah
1909
दीवान-ए-तअाशुक़ अलयहिर्रहमा
Guldasta-e-Taashshuq
1874
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