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भारतीय संगीत के विद्वान और संगीतकार।

भारतीय संगीत के विद्वान और संगीतकार।

शाहिद मीर

ग़ज़ल 16

अशआर 9

और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन

मेरी चादर मिरे पैरों के बराबर कर दे

पहले तो छीन ली मिरी आँखों की रौशनी

फिर आईने के सामने लाया गया मुझे

शजर ने लहलहा कर और हवा ने चूम कर मुझ को

तिरी आमद के अफ़्साने सुनाए झूम कर मुझ को

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वही सफ़्फ़ाक हवाओं का सदफ़ बनते हैं

जिन दरख़्तों का निकलता हुआ क़द होता है

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तुझ को देखा नहीं महसूस किया है मैं ने

किसी दिन मिरे एहसास को पैकर कर दे

दोहा 10

जीवन जीना कठिन है विष पीना आसान

इंसाँ बन कर देख लो 'शंकर' भगवान

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हर इक शय बे-मेल थी कैसे बनती बात

आँखों से सपने बड़े नींद से लम्बी रात

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ज़ेहन में तू आँखों में तू दिल में तिरा वजूद

मेरा तो बस नाम है हर जा तू मौजूद

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काग़ज़ पर लिख दीजिए अपने सारे भेद

दिल में रहे तो आँच से हो जाएँगे छेद

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आँगन है जल-थल बहुत दीवारों पर घास

घर के अंदर भी मिला 'शाहिद' को बनवास

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पुस्तकें 7

 

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