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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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शफ़क़त काज़मी

1914 - 1975

शफ़क़त काज़मी

ग़ज़ल 9

अशआर 2

कभी तो उन को हमारा ख़याल आएगा

हम इस उमीद पे तर्क-ए-वफ़ा नहीं करते

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नई बहार का मुज़्दा बजा सही लेकिन

अभी तो अगली बहारों का ज़ख़्म ताज़ा है

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