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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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शबाब

ग़ज़ल 5

 

अशआर 3

मैं तिरे हुस्न का ख़ल्वत में तमाशाई हूँ

आईना सीख जाए कहीं हैरत मेरी

ख़त्त-ए-पेशानी में सफ़्फ़ाक अज़ल के दिन से

तेरी तलवार से लिक्खी है शहादत मेरी

हुई मुद्दत कि मैं ने बुत-परस्ती छोड़ दी ज़ाहिद

मगर अब तक गले में देख ले ज़ुन्नार बाक़ी है

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