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सरशार सिद्दीक़ी

1926 - 2008 | पाकिस्तान

सरशार सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 10

नज़्म 4

 

अशआर 7

उजड़े हैं कई शहर, तो ये शहर बसा है

ये शहर भी छोड़ा तो किधर जाओगे लोगो

नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागा

धूप दीवार से आँगन में उतर आई है

इक कार-ए-मुहाल कर रहा हूँ

ज़िंदा हूँ कमाल कर रहा हूँ

मैं ने इबादतों को मोहब्बत बना दिया

आँखें बुतों के साथ रहीं दिल ख़ुदा के साथ

ना-मुस्तजाब इतनी दुआएँ हुईं कि फिर

मेरा यक़ीं भी उठ गया रस्म-ए-दुआ के साथ

लोरी 1

 

पुस्तकें 6

 

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