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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सरफ़राज़ ज़ाहिद

ग़ज़ल 19

अशआर 29

मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ' था

हमारे साथ पेश आने से पहले

लम्हा इतनी गुंजाइश रखता है ख़ुद में

आप उस में आने से पहले जा सकते हैं

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आँसू नहीं बना सो हम ने

उजलत में क़हक़हा बनाया

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कुएँ की सम्त बुला ले कोई ख़्वाब मुझे

मैं अपने बाप का सब से हसीन बेटा हूँ

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वो एक ख़्वाब में मेरे क़रीब आए अगर

मैं सारे शहर की नींदें ख़रीद सकता हूँ

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