सख़ी लख़नवी
ग़ज़ल 34
अशआर 53
जाएगी गुलशन तलक उस गुल की आमद की ख़बर
आएगी बुलबुल मिरे घर में मुबारकबाद को
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हिचकियाँ आती हैं पर लेते नहीं वो मेरा नाम
देखना उन की फ़रामोशी को मेरी याद को
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बात करने में होंट लड़ते हैं
ऐसे तकरार का ख़ुदा-हाफ़िज़
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बर्ग-ए-गुल आ मैं तेरे बोसे लूँ
तुझ में है ढंग यार के लब का
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