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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सज्जाद बलूच

1976

सज्जाद बलूच

ग़ज़ल 16

अशआर 3

अफ़्सोस ये वबा के दिनों की मोहब्बतें

इक दूसरे से हाथ मिलाने से भी गए

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उसे मालूम था ये शाम-ए-जुदाई है तो बस

आख़िरी बार बहुत देर इकट्ठे बैठे

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राह का शजर हूँ मैं और इक मुसाफ़िर तू

दे कोई दुआ मुझ को ले कोई दुआ मुझ से

 

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