साहिल अहमद
ग़ज़ल 9
नज़्म 7
अशआर 10
क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बार
ऐ सितमगर ले न अंगड़ाई बहुत
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किस तसव्वुर के तहत रब्त की मंज़िल में रहा
किस वसीले के तअस्सुर का निगहबान था मैं
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उन से ऐ दोस्त मिरा यूँ कोई रिश्ता तो न था
क्यूँ फिर इस तर्क-ए-तअल्लुक़ से पशेमान था मैं
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शेर गुफा से निकलेगा
शोर मचेगा जंगल में
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आज कुआँ भी चीख़ उठा है
किसी ने पत्थर मारा होगा
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