aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1970 | भोपाल, भारत
एक मशहूर शायरा जिन्होंने अपनी शायरी में एक नया तानीसी एहसास पैदा किया
आजिज़ी आज है मुमकिन है न हो कल मुझ में
इस तरह ऐब निकालो न मुसलसल मुझ में
फ़ज़ा ये अम्न-ओ-अमाँ की सदा रखें क़ाएम
सुनो ये फ़र्ज़ तुम्हारा भी है हमारा भी
आज इस अंदाज़ से तुम ने मुझे आवाज़ दी
यक-ब-यक मुझ में ख़याल आया कि हाँ मैं भी तो हूँ
आप शायद भूल बैठे हैं यहाँ मैं भी तो हूँ
इस ज़मीं और आसमाँ के दरमियाँ मैं भी तो हूँ
Athara Sau Sattawan 1857
Farhaad Nahi Hone Ke
2019
Ghar Aane Ko Hai
2014
Girdaab
Sheri Majmua
Hisar-e-Zat Se Pare
Intikhab-e-Sukhan
2010
Shumara Number-004,005
2007
Shumara Number-006
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