aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1914 - 1974 | इटावा, भारत
यक़ीनन रहबर-ए-मंज़िल कहीं पर रास्ता भूला
वगर्ना क़ाफ़िले के क़ाफ़िले गुम हो नहीं सकते
आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ
वो अपनी ज़िंदगी कि जवाँ भी हसीं भी थी
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
हम तिरे हुस्न की रख़्शंदा सहर तक पहुँचे
सुब्ह बिछड़ कर शाम का व'अदा शाम का होना सहल नहीं
उन की तमन्ना फिर कर लेना सुब्ह को पहले शाम करो
ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश
ये भी हुआ कि हम तिरे दर से गुज़र गए
Maah-o-Anjum
1952
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