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नीलमा नाहीद दुर्रानी

1955

नीलमा नाहीद दुर्रानी

ग़ज़ल 20

नज़्म 6

अशआर 6

औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है

औरत अपना आप गँवाए तब भी मुजरिम होती है

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कोई तो आए ख़िज़ाँ में पत्ते उगाने वाला

गुलों की ख़ुशबू को क़ैद करना कोई तो सीखे

शबनम तुम्हारे सहन में रोई तमाम रात

लेकिन हर एक फूल का चेहरा निखर गया

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मैं ने सूरज चाँद सितारे तेरे नाम लिखे हैं

जग में जितने फूल हैं सारे तेरे नाम लिखे हैं

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हम अपने आप में गुम जा रहे थे

किसी गुफ़्तार ने चौंका दिया था

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पुस्तकें 3

 

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