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नज़्म तबातबाई

1854 - 1933 | लखनऊ, भारत

नज़्म तबातबाई

ग़ज़ल 26

नज़्म 5

 

अशआर 20

बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की

सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़

उड़ाई ख़ाक जिस सहरा में तेरे वास्ते मैं ने

थका-माँदा मिला इन मंज़िलों में आसमाँ मुझ को

दिल इस तरह हवा-ए-मोहब्बत में जल गया

भड़की कहीं आग उट्ठा धुआँ कहीं

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बनाया तोड़ के आईना आईना-ख़ाना

देखी राह जो ख़ल्वत से अंजुमन की तरफ़

नश्शे में सूझती है मुझे दूर दूर की

नद्दी वो सामने है शराब-ए-तुहूर की

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