नज़ीर क़ैसर
ग़ज़ल 34
अशआर 18
अब के बार मैं तुझ से मिलने नहीं आया
तुझ को अपने साथ ले जाने आया हूँ
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कोई मुझ को ढूँढने वाला
भूल गया है रस्ता मुझ में
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जब वो साथ होता है
हम अकेले होते हैं
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बस हम दोनों ज़िंदा हैं
बाक़ी दुनिया फ़ानी है
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मैं उसे कैसे जीत सकता हूँ
वो मुझे अपना जिस्म हारती है
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