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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नजीब अहमद

ग़ज़ल 31

नज़्म 4

 

अशआर 15

किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे

किस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है

मौत से ज़ीस्त की तकमील नहीं हो सकती

रौशनी ख़ाक में तहलील नहीं हो सकती

ज़मीं पे पाँव ज़रा एहतियात से धरना

उखड़ गए तो क़दम फिर कहाँ सँभलते हैं

ज़िंदगी भर की कमाई ये तअल्लुक़ ही तो है

कुछ बचे या बचे इस को बचा रखते हैं

वही रिश्ते वही नाते वही ग़म

बदन से रूह तक उकता गई थी

चित्र शायरी 1

 

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