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मुज़्तर हैदरी

1920 - 1975 | कोलकाता, भारत

ख़ुशनुमा तरन्नुम के लिए मशहूर

ख़ुशनुमा तरन्नुम के लिए मशहूर

मुज़्तर हैदरी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 10

ख़ुलूस हो तो कहीं बंदगी की क़ैद नहीं

सनम-कदे में तवाफ़-ए-हरम भी मुमकिन है

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कोई भी शक्ल मुकम्मल किताब बन सकी

हर एक चेहरा यहाँ इक़्तिबास जैसा है

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महफ़िल में उन की खुल गया दिल का मुआमला

पलकों पे अश्क रह गए पीने के ब'अद भी

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कल रात मिरे दिल ने फिर चुपके से पूछा है

'मुज़्तर' तिरी आहों में आएगा असर कब तक

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झुकी झुकी जो है कड़वी-कसीली नीम की शाख़

उसी पे शहद का छत्ता दिखाई देता है

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पुस्तकें 2

 

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