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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मुर्तज़ा बरलास

1934

पाकिस्तान के मशहूर-ओ-मारूफ़ जदीद शायर

पाकिस्तान के मशहूर-ओ-मारूफ़ जदीद शायर

मुर्तज़ा बरलास

ग़ज़ल 39

अशआर 5

दुश्मन-ए-जाँ ही सही दोस्त समझता हूँ उसे

बद-दुआ जिस की मुझे बन के दुआ लगती है

नाम इस का आमरियत हो कि हो जम्हूरियत

मुंसलिक फ़िरऔनियत मसनद से तब थी अब भी है

माना कि तेरा मुझ से कोई वास्ता नहीं

मिलने के ब'अद मुझ से ज़रा आइना भी देख

मुझे की गई है ये पेशकश कि सज़ा में होंगी रियायतें

जो क़ुसूर मैं ने किया नहीं वो क़ुबूल कर लूँ दबाव में

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चेहरे की चाँदनी पे इतना भी मान कर

वक़्त-ए-सहर तू रंग कभी चाँद का भी देख

पुस्तकें 5

 

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