aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1952 - 2024 | लखनऊ, भारत
लोकप्रिय शायर, मुशायरों का ज़रूरी हिस्सा।
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
परहेज़ दुनिया की सबसे कारगर दवा है लेकिन सबसे कम इस्तेमाल होती है।
नींद तो उस नाज़ुक-मिज़ाज बच्ची की तरह है जो सबकी गोद में नहीं जाती।
मैं ने ग़ुर्बत के दिनों में भी बीवी को हमेशा ऐसे रखा है जैसे मुक़द्दस किताबों में मोर के पर रखे जाते हैं।
अस्पताल आदमी को ज़िंदा रखने की आख़िरी कोशिश का नाम है।
शादी के घर में सुकून ढूँढना रेलवे स्टेशन पर अस्ली मिनरल वाटर ढूँढने की तरह होता है।
Baghair Naqshe Ka Makan
2001
Chehre Yaad Rahte Hain
2007
Chehre Yad Rahte Hain
Jangali Phool
कहो ज़िल्ले इलाही से
Kaho Zill-e-Ilaahi Se
Maan
Qaamat
Munawwar Rana Ke Fikr-o-Fun Par Manzoom Izhar-e-Khayal
2008
Safed Jangali Kabootar
2005
Sukhan Saraye
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद सिमट कर शर्म सारी एक बोसे में चली आई
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
भले लगते हैं स्कूलों की यूनिफार्म में बच्चे कँवल के फूल से जैसे भरा तालाब रहता है
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है
बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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